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हाल ही में पाकिस्तान ने भारत पर अंतरराष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन का आरोप लगाया, जबकि खुद वह लंबे समय से आतंकवाद से निपटने में नाकाम रहा है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि जहां दुनिया के 57 इस्लामिक देश हैं, वहीं खुलकर पाकिस्तान के साथ खड़े होने वाले देशों की संख्या बस दो रह गई है—तुर्की और अजरबैजान। बाकी मुस्लिम देश या तो चुप हैं या तटस्थ रुख अपना रहे हैं। ऐसा क्यों?
गलतियों से भरोसा टूटा, अब कोई साथ देने को तैयार नहीं
पाकिस्तान लंबे समय से इस्लामी दुनिया में खुद को 'धर्म के रक्षक' के रूप में पेश करता रहा है। लेकिन समय के साथ उसकी आंतरिक और बाहरी नीतियों ने उसके अपने ही मित्र देशों का भरोसा तोड़ दिया। सऊदी अरब और यूएई जैसे देशों ने उसे वर्षों तक भारी आर्थिक सहायता दी, लेकिन अब वे पाकिस्तान की अस्थिरता को लेकर सतर्क हो गए हैं। इन देशों के भारत के साथ व्यापारिक और कूटनीतिक रिश्ते पहले से कहीं बेहतर हो चुके हैं।
कश्मीर पर आतंक का सहारा, अंतरराष्ट्रीय मंच पर किरकिरी
भारत-पाकिस्तान के बीच कश्मीर एक द्विपक्षीय मुद्दा है, लेकिन पाकिस्तान ने इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने के साथ-साथ आतंकी संगठनों का सहारा लेना शुरू किया। जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे समूह पाकिस्तान की सरजमीं से संचालित होते रहे हैं। इससे उसकी छवि एक ऐसे देश की बन गई है जो आतंक को राजनीतिक साधन की तरह इस्तेमाल करता है।
तो तुर्की और अजरबैजान क्यों हैं पाकिस्तान के साथ?
जहां बाकी मुस्लिम देश पाकिस्तान से दूरी बना रहे हैं, वहीं तुर्की और अजरबैजान खुलकर उसके समर्थन में खड़े हैं। इसके पीछे धार्मिक एकता से ज्यादा राजनीतिक महत्वाकांक्षा है:
तुर्की: राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन खुद को इस्लामी दुनिया का नेता बनाना चाहते हैं। वह अक्सर ओटोमन साम्राज्य के गौरवशाली अतीत का हवाला देकर मुस्लिम देशों में नेतृत्व की भूमिका निभाना चाहते हैं। पाकिस्तान इस महत्वाकांक्षा में तुर्की का खुलकर समर्थन करता है। कश्मीर को लेकर एर्दोगन कई बार संयुक्त राष्ट्र में भी बयान दे चुके हैं, जो भारत की संप्रभुता पर सवाल खड़े करता है।
अजरबैजान: अजरबैजान और तुर्की के रिश्ते ‘वन नेशन, टू स्टेट्स’ की तर्ज पर चलते हैं। 2020 में आर्मेनिया के खिलाफ युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने अजरबैजान का खुले तौर पर समर्थन किया था। इसी दोस्ती के बदले में अब अजरबैजान पाकिस्तान के साथ खड़ा है।
आज के दौर में देश केवल धार्मिक आधार पर फैसले नहीं लेते। आर्थिक, रणनीतिक और कूटनीतिक फायदे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो गए हैं। मुस्लिम देशों का यही बदला नजरिया पाकिस्तान को अलग-थलग कर रहा है। इस्लामी एकता के नारों से ज्यादा अब स्थिरता, निवेश और शांतिपूर्ण संबंधों को प्राथमिकता दी जा रही है।
आतंक के साथ खड़ा पाकिस्तान: इस्लामी दुनिया में बढ़ती तन्हाई
पाकिस्तान की आतंकवाद से साठगांठ और गैर-जिम्मेदार विदेश नीति ने उसे ऐसी स्थिति में ला खड़ा किया है जहां उसके पुराने मित्र देश भी उसका साथ देने से बच रहे हैं। तुर्की और अजरबैजान जैसे अपवादों को छोड़ दें तो बाकी इस्लामी देश अब व्यवहारिक सोच और वैश्विक स्थिरता को प्राथमिकता देने लगे हैं। यही वजह है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान पहले से कहीं ज्यादा अकेला नजर आता है।
Baten UP Ki Desk
Published : 10 May, 2025, 6:01 pm
Author Info : Baten UP Ki