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एक तरफ LAC का तनाव, दूसरी तरफ जिनपिंग से वार्ता! पीएम मोदी की दोधारी कूटनीति?

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 अगस्त और 1 सितंबर को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट में हिस्सा लेने के लिए चीन की यात्रा पर जाएंगे। ये दौरा इस लिहाज़ से ऐतिहासिक है क्योंकि 2020 में गलवान घाटी में भारत-चीन के बीच हुई सैन्य झड़प के बाद यह पीएम मोदी की पहली चीन यात्रा होगी।

11 साल में 6वीं चीन यात्रा: मोदी का अब तक का रिकॉर्ड

प्रधानमंत्री के तौर पर यह मोदी की छठी चीन यात्रा होगी – जो पिछले 70 वर्षों में किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री का सबसे बड़ा आंकड़ा है। इससे पहले मोदी 2018 में चीन गए थे। इससे साफ है कि वह द्विपक्षीय रिश्तों को लेकर कूटनीतिक रूप से कितने एक्टिव हैं।

मोदी-जिनपिंग आखिरी बार कहां मिले थे?

प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की आखिरी मुलाकात अक्टूबर 2024 में रूस के कजान शहर में ब्रिक्स समिट के दौरान हुई थी।

50 मिनट की उस बातचीत में पीएम मोदी ने स्पष्ट रूप से कहा था:

"सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। आपसी विश्वास, सम्मान और संवेदनशीलता संबंधों की नींव होनी चाहिए।"

कूटनीति का प्रीव्यू: जयशंकर ने खोला था रास्ता

बीते महीने विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने चीन का दौरा किया था। वहां उन्होंने शी जिनपिंग और विदेश मंत्री वांग यी से बातचीत की थी।
मुख्य मुद्दे थे:

  • LAC पर तनाव घटाना

  • व्यापार प्रतिबंधों में ढील

  • जल संसाधन डेटा की साझेदारी

  • आतंकवाद के खिलाफ साझा रुख

यह मुलाकात मोदी की यात्रा का रोडमैप तय करने में मददगार साबित हुई।

जापान से चीन – फिर क्या संकेत देना चाहते हैं मोदी?

प्रधानमंत्री 30 अगस्त को जापान दौरे पर होंगे, जहां वे भारत-जापान शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। उसके अगले ही दिन चीन रवाना होंगे। एक तरफ जापान भारत का रणनीतिक साझेदार है, दूसरी ओर चीन के साथ तनावपूर्ण रिश्ते रहे हैं।

क्या पीएम मोदी एशिया में शक्ति संतुलन के नए संकेत देना चाहते हैं?

ट्रंप का टैरिफ और भारत का कूटनीतिक टेस्ट

यह दौरा ऐसे समय पर हो रहा है जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 25% टैरिफ लगाने का ऐलान किया है – रूस से तेल और हथियार खरीदने के चलते। भारत रूस से हर दिन 17.8 लाख बैरल कच्चा तेल खरीदता है, और चीन के बाद रूस का दूसरा सबसे बड़ा ग्राहक है। ऐसे में मोदी की चीन यात्रा न केवल एशियाई सहयोग बल्कि अमेरिकी दबाव के जवाब में एक रणनीतिक संतुलन भी हो सकती है।

SCO: भारत के लिए कितना अहम है यह मंच?

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की स्थापना 2001 में हुई थी, और भारत 2017 में इसका सदस्य बना।
इस संगठन के ज़रिए भारत को मिलता है:

  • चीन और रूस के साथ प्रत्यक्ष संवाद का मंच

  • आतंकवाद, ड्रग तस्करी और साइबर क्राइम जैसे मुद्दों पर साझा रणनीति बनाने का अवसर

  • यूरेशियन क्षेत्र में अपनी मौजूदगी मजबूत करने का मौका

इन बातों पर होंगी नजरें:

  • क्या मोदी-जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय बातचीत होगी?

  • क्या LAC पर भरोसे और शांति का नया रास्ता निकलेगा?

  • क्या भारत, चीन और अमेरिका के बीच नई कूटनीतिक चालें देखने को मिलेंगी?

तनाव के साए में कूटनीति की नई दस्तक

पीएम मोदी की चीन यात्रा केवल SCO समिट में भागीदारी नहीं, बल्कि एक बड़े कूटनीतिक मोड़ का संकेत हो सकती है। गलवान की गूंज के बीच यह दौरा तनाव और सहयोग दोनों के बीच संतुलन साधने की कोशिश है। अब देखने वाली बात ये होगी कि क्या पुरानी तल्खियों को भुलाकर दोनों देश एक नई शुरुआत कर पाते हैं या नहीं।

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