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भारत की न्यायपालिका ने आज एक ऐतिहासिक मोड़ लिया। जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने बुधवार, 14 मई को देश के 52वें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में शपथ दिलाई। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और कई वरिष्ठ नेता मौजूद रहे। मौजूदा CJI संजीव खन्ना का कार्यकाल 13 मई को खत्म हो चुका है।
जस्टिस गवई देश के पहले बौद्ध और दूसरे दलित समुदाय से आने वाले CJI हैं। उनका कार्यकाल भले ही सिर्फ 6 महीने का हो, लेकिन उनकी नियुक्ति सामाजिक न्याय और समावेश की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम मानी जा रही है।
'मेहनत और सेवा का फल मिला': मां कमलताई की भावुक प्रतिक्रिया
शपथ ग्रहण के बाद जस्टिस गवई की मां कमलताई गवई ने मीडिया से कहा,
"भूषण ने हमेशा समाज की सेवा को प्राथमिकता दी। उन्होंने कठिन हालातों में भी हार नहीं मानी। यह पद उनकी मेहनत का इनाम है।"
जन्म: 24 नवंबर 1960, अमरावती (महाराष्ट्र)
कानूनी करियर की शुरुआत: 1985 में वकालत शुरू की
बॉम्बे हाईकोर्ट में स्वतंत्र प्रैक्टिस: 1987
एडिशनल जज (2003) से लेकर पर्मानेंट जज (2005) तक का सफर
सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति: 24 मई 2019
रिटायरमेंट की तारीख: 23 नवंबर 2025
महत्वपूर्ण फैसले जिनका हिस्सा रहे CJI गवई
जस्टिस गवई ने 2016 की नोटबंदी योजना को 4:1 बहुमत से वैध ठहराते हुए कहा कि यह निर्णय केंद्र सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक के बीच परामर्श के बाद लिया गया था और यह 'अनुपातिकता की कसौटी पर खरा उतरता है।
जुलाई 2023 में जस्टिस गवई की बेंच ने प्रावर्तन निदेशालय (ED) के निदेशक संजय कुमार मिश्रा को कार्यकाल के तीसरे विस्तार को अवैध घोषित किया और उन्हें 31 जुलाई 2023 तक पद छोड़ने का निर्देश दिया था।
2024 में, जस्टिस गवई और जस्टिस कैची विश्वनाथन की बेंच ने कहा कि केवल आरोपी या दोषी होने के आधार पर किसी की संपत्ति को ध्वस्त करना असंवैधानिक है। कार्रवाई बिना कानूनी प्रक्रिया के नहीं कर सकते, अगर होती है तो संबंधित अधिकारी जिम्मेदार होगा।
जस्टिस गवई की आध्यक्षता बाली बेंच ने 30 साल से ज्यादा समय से जेल में बंद छह दोषियों की रिहाई का आदेश दिया, यह मानते हुए कि तमिलनाडु सरकार की सिफारिश पर राज्यपाल ने कोई कार्रवाई नहीं की थी।
तमिलनाडु सरकार के वणियार समुदाय को विशेष आरक्षण देने के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया, क्योंकि यह अन्य पिछड़ा वर्गों के साथ भेदभावपूर्ण था।
अस्टिस गवई की पीठ ने नागरिक अधिकार कार्यकती तीस्ता सीतलवाड़ को 2002 के गोधरा दंगों से संबंधित मामले में नियमित जमानत प्रदान की।
अस्टिस गवई ने उस संविधान बेंच का हिस्सा वे, जिसने यह निर्णय दिया कि मंत्रियों और सार्वजनिक अधिकारियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अतिरिक प्रतिबंध नहीं लगाए जा सकते।
अगर विश्वास टूटा, तो लोग न्यायपालिका की जगह भीड़ का सहारा लेंगे"
2024 में गुजरात के एक सम्मेलन में उन्होंने चेताया था –
"न्यायपालिका में जनता का विश्वास हिल गया तो समाज में अराजकता फैल सकती है। लोग भीड़ के न्याय या भ्रष्ट साधनों की ओर बढ़ेंगे।"
जस्टिस गवई के बाद वरिष्ठता क्रम में जस्टिस सूर्यकांत आते हैं। संभावना है कि वह देश के 53वें CJI होंगे।
CJI गवई: न्यायपालिका में सामाजिक प्रतिनिधित्व का प्रतीक
उनकी नियुक्ति केवल एक संवैधानिक पदभार नहीं, बल्कि एक सामाजिक संदेश भी है – कि साधारण पृष्ठभूमि से उठकर असाधारण ऊँचाई तक पहुँचना अब भी मुमकिन है। भारत को आज एक ऐसा न्यायाधीश मिला है, जो संविधान, समावेश और सेवा की मिसाल है।
Baten UP Ki Desk
Published : 14 May, 2025, 5:16 pm
Author Info : Baten UP Ki