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60 साल पुरानी जानलेवा बीमारी का खोजा गया इलाज, अब काबू में होगा 1965 से फैला ये जानलेवा वायरस

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भारत ने एक बड़ी चिकित्सा उपलब्धि हासिल करते हुए उस घातक वायरस का इलाज खोज लिया है, जिसे दशकों से एक "खामोश हत्यारा" माना जा रहा था। चांदीपुरा वायरस – एक रैब्डोवायरस – अब तक देश के कई आदिवासी और ग्रामीण इलाकों में बच्चों की मौत का कारण बनता रहा है। वैज्ञानिकों ने पहली बार इस वायरस के खिलाफ फेविपिराविर दवा के प्रभाव को सफलतापूर्वक प्रमाणित किया है।

क्या है चांदीपुरा वायरस?

इस वायरस की पहचान सबसे पहले 1965 में महाराष्ट्र के नागपुर जिले के चांदीपुरा गांव में हुई थी, जिसके चलते इसका नाम भी 'चांदीपुरा वायरस' रखा गया। यह वायरस बालू मक्खी (sandfly) के काटने से फैलता है और विशेष रूप से 5 से 15 साल के बच्चों को प्रभावित करता है। यह मस्तिष्क पर हमला करता है और एन्सेफलाइटिस (दिमागी बुखार) का कारण बनता है। तेज बुखार, उल्टी, बेहोशी जैसे लक्षणों के साथ यह वायरस मरीज की जान 24 से 48 घंटे में ले सकता है।

ICMR की वैज्ञानिक सफलता

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के पुणे स्थित राष्ट्रीय वायरोलॉजी संस्थान (NIV) के वैज्ञानिकों ने सेल और एनिमल मॉडल पर फेविपिराविर दवा का परीक्षण किया। नतीजे सकारात्मक रहे – दवा ने वायरस की वृद्धि को प्रभावी रूप से रोका। वैज्ञानिकों ने इसे इस वायरस के खिलाफ पहला प्रामाणिक और प्रभावी एंटीवायरल उपचार बताया है। अब इस दवा के मानव परीक्षण की तैयारियां की जा रही हैं।

हालिया प्रकोप और मौतें

2024 में गुजरात में चांदीपुरा वायरस का बड़ा प्रकोप सामने आया था। जून से अगस्त के बीच 82 लोगों की जान चली गई और 245 से अधिक संक्रमित हुए। यह बीते दो दशकों का सबसे बड़ा प्रकोप माना गया। 2003-2004 के बीच आंध्र प्रदेश में 183 मौतें हुई थीं, वहीं महाराष्ट्र और गुजरात में कुल 138 मौतें दर्ज की गई थीं। 2004 से 2011 तक गुजरात में 100 से ज्यादा मामले आए और 31 मौतें हुईं।

किन राज्यों में है सबसे ज्यादा खतरा?

विशेषज्ञों के अनुसार भारत के दस राज्य चांदीपुरा वायरस की सबसे ज्यादा चपेट में हैं —महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश (पूर्वी क्षेत्र)। इन क्षेत्रों को Acute Encephalitis Syndrome (AES) बेल्ट कहा जाता है, जहां हर साल हजारों बच्चे दिमागी बुखार की चपेट में आते हैं।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

ICMR के अधिकारियों का कहना है कि "चांदीपुरा वायरस को लेकर अब तक जागरूकता बेहद कम थी। यह वायरस साइलेंट किलर की तरह बच्चों को निशाना बनाता रहा है। दवा की खोज एक क्रांतिकारी कदम है, लेकिन अब हमें इसकी पहचान और रोकथाम को लेकर भी सतर्क रहना होगा।"

चांदीपुरा वायरस के इलाज की दिशा में निर्णायक कदम

अब वैज्ञानिकों की नजरें मानव परीक्षण पर टिकी हैं। यदि फेविपिराविर दवा इन परीक्षणों में सफल होती है, तो यह न केवल भारत में बल्कि विश्व स्तर पर वायरल एन्सेफलाइटिस के खिलाफ एक बड़ा हथियार बन सकती है। भारत की यह वैज्ञानिक उपलब्धि एक ऐतिहासिक कदम है जो न केवल सैकड़ों जानें बचा सकती है, बल्कि ग्रामीण और आदिवासी स्वास्थ्य सुरक्षा को भी मजबूत बना सकती है। चांदीपुरा वायरस से लड़ाई अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुकी है।

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