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एक आंदोलन जिसने बदला पंजाब के किसानों का भविष्य!

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भारत का इतिहास केवल राजाओं और बादशाहों की कहानियों से नहीं बना, बल्कि उन अनगिनत गुमनाम लोगों के संघर्षों से भी बना है, जिन्होंने अपने हक और अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। ऐसा ही एक ऐतिहासिक आंदोलन था PEPSU मुजरा आंदोलन, जिसने पंजाब के किसानों के जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया। यह आंदोलन केवल ज़मीन के मालिकाना हक का सवाल नहीं था, बल्कि यह अन्याय और शोषण के खिलाफ़ खड़े होने की एक मिसाल थी।

कौन थे मुजरा किसान?

मुजरा वे भूमिहीन किसान थे, जो कई पीढ़ियों से बिस्वेदारों (जमींदारों) की जमीन पर खेती कर रहे थे, लेकिन उनके पास उस जमीन का कोई मालिकाना हक नहीं था। ब्रिटिश सरकार ने जबरन कुछ छोटे किसानों को उनकी जमीन से बेदखल कर दिया और उन्हें "मुजरा" बना दिया। वे ज़मीन पर काम तो करते थे, लेकिन उसकी उपज का बड़ा हिस्सा जमींदार और राजा को जाता था। यानी, शोषण की पूरी एक व्यवस्था थी, जिसमें किसानों को उनकी मेहनत का नाममात्र हिस्सा मिलता था।

कैसे हुई थी आंदोलन की शुरुआत? 

1930 के दशक में पंजाब के पटियाला, संगरूर, बठिंडा और अन्य इलाकों में इस शोषण के खिलाफ आवाज उठने लगी। किसानों ने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष शुरू किया और धीरे-धीरे यह आंदोलन जोर पकड़ने लगा। स्वतंत्रता के बाद, जब पंजाब की रियासतों को पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्य संघ (PEPSU) में पुनर्गठित किया गया, तब भी जमींदारों ने अपनी जमीनें वापस लेने की कोशिश की, लेकिन मुजराओं के संगठित संघर्ष ने इसे रोक दिया।

1949: संघर्ष की निर्णायक लड़ाई

मार्च 1949 में जमींदारों ने फिर से किसानों से उनकी जमीन छीनने की कोशिश की। लेकिन इस बार किशनगढ़ गांव के किसानों ने जमींदारों का विरोध किया और उन्हें गाँव से खदेड़ दिया। उन्होंने अपनी फसलें खुद काटी और उसका उपयोग खुद के लिए किया। सरकार को यह बर्दाश्त नहीं हुआ और पटियाला की पुलिस ने हस्तक्षेप किया। 17 मार्च को हुई झड़प में एक पुलिस अधिकारी की मौत हो गई, जिससे स्थिति और बिगड़ गई। 19 मार्च को सेना ने गांव को घेर लिया और हिंसक टकराव में चार मुजरा किसान मारे गए। इस घटना के बाद 35 किसानों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन जनता के दबाव के चलते फरवरी 1950 तक सभी को रिहा कर दिया गया।

संघर्ष की जीत और भूमि सुधार कानून

1952 में जब भूमि सुधार कानून (Land Reform Laws) लागू हुए, तब जाकर किसानों को उनकी ज़मीन का मालिकाना हक मिला। यह जीत उन संघर्षों का नतीजा थी, जो किसानों ने वर्षों तक किए। इस आंदोलन में कई बहादुर नेताओं ने किसानों को संगठित किया और उनका नेतृत्व किया।

  • जगीर सिंह जोगा ने आंदोलन का नेतृत्व किया।

  • बूटा सिंह ने भूमि अधिकारों के लिए संघर्ष किया।

  • तेजा सिंह सुतंतर ने इस आंदोलन को अपना समर्थन दिया।

  • सेवा सिंह ठीकरीवाला और भाई जोध सिंह ने किसानों के हक के लिए आवाज़ उठाई और जागरूकता फैलाई।

आज भी जिंदा है यह संघर्ष

हर साल 19 मार्च को यह दिवस संघर्ष की याद में मनाया जाता है। पहले इसे तीन दिवसीय सम्मेलन के रूप में आयोजित किया जाता था, लेकिन अब इसे एक दिवसीय कार्यक्रम के रूप में मनाया जाता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि जब लोग संगठित होते हैं, तो वे किसी भी अन्याय के खिलाफ जीत सकते हैं। PEPSU मुजरा आंदोलन सिर्फ पंजाब के किसानों के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के किसानों के लिए एक प्रेरणा है। यह संघर्ष दिखाता है कि संगठित होकर लड़ाई लड़ने से बदलाव संभव है।

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