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घटती फर्टिलिटी रेट पर वैश्विक चिंता! रूस से लेकर भारत तक, बुजुर्ग आबादी का बढ़ता बोझ...

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दुनिया के कई देश घटती जनसंख्या दर और बढ़ती बुजुर्ग आबादी की समस्या से जूझ रहे हैं। रूस, भारत, चीन और जापान जैसे देश इस चुनौती को दूर करने के लिए नई योजनाएं बना रहे हैं। यह समस्या केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज की बदलती सोच, आर्थिक दबाव और जीवनशैली में आए बदलावों का परिणाम है।

रूस का कड़ा कदम: 'चाइल्ड-फ्री प्रोपगैंडा' पर रोक-

रूस में हाल ही में "चाइल्ड-फ्री प्रोपगैंडा" पर प्रतिबंध लगाने वाला एक कानून पारित किया गया। इस कानून के तहत किसी को भी बच्चों को न पैदा करने या कम पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करना अब अपराध माना जाएगा। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इसे "पश्चिम से आयातित विनाशकारी विचारधारा" बताया है। नियम तोड़ने पर 4,00,000 रूबल (लगभग 4,100 डॉलर) तक का जुर्माना लगाया जाएगा। विदेशी नागरिकों को जुर्माने के साथ देश से बाहर भी निकाला जा सकता है। यह कदम रूस की तेजी से घटती जनसंख्या दर को नियंत्रित करने के उद्देश्य से उठाया गया है। 2024 के पहले छह महीनों में रूस में केवल 5.99 लाख बच्चे पैदा हुए, जो 1999 के बाद सबसे कम है। इसके विपरीत, इसी अवधि में मौतों का आंकड़ा 3.25 लाख को पार कर गया। राष्ट्रपति पुतिन ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया है।

भारत में घटती फर्टिलिटी रेट की चिंता-

भारत में भी फर्टिलिटी रेट तेजी से घट रही है। 1950 के दशक में जहां औसतन हर महिला 6 बच्चों को जन्म देती थी, वहीं 2021 में यह दर घटकर 2 हो गई। 2050 तक यह आंकड़ा 1.7 तक गिर सकता है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने हाल ही में लोगों से अधिक बच्चे पैदा करने की अपील की। उन्होंने राज्य की फर्टिलिटी रेट 1.6 पर आने को लेकर चिंता जताई। इसके लिए उन्होंने कानून लाने का सुझाव दिया, जिसमें चुनाव लड़ने के लिए दो या अधिक बच्चों की शर्त जोड़ी जा सकती है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने तो मजाक में जोड़ों को 16 बच्चे पैदा करने की सलाह दी थी।

चीन और जापान भी चिंतित-

चीन ने अपनी जनसंख्या बढ़ाने के लिए 'वन चाइल्ड पॉलिसी' को खत्म कर पहले 'टू चाइल्ड पॉलिसी' और अब 'थ्री चाइल्ड पॉलिसी' लागू की। वहीं, जापान में विवादित सुझाव दिए गए, जिनमें महिलाओं के लिए 30 साल की उम्र के बाद गर्भाशय निकालने का सुझाव भी शामिल है।

रूस की अनोखी पहल: 'सेक्स एट वर्कप्लेस'-

रूस में कर्मचारियों को लंच ब्रेक के दौरान बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करने जैसी योजनाओं पर भी चर्चा हुई। यह दिखाता है कि देश जनसंख्या संकट को लेकर कितनी गंभीरता से विचार कर रहे हैं।

फर्टिलिटी रेट घटने के पीछे के कारण-

विशेषज्ञ मानते हैं कि बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के चलते महिलाएं अपने जीवन पर अधिक नियंत्रण पा रही हैं। आधुनिक जीवनशैली, महंगाई, और बच्चों की परवरिश का खर्च भी फर्टिलिटी रेट घटने का मुख्य कारण है।

घटती जनसंख्या के असर-

घटती फर्टिलिटी रेट का सबसे बड़ा असर श्रम बाजार और आर्थिक उत्पादन पर पड़ेगा। 2050 तक भारत में हर पांचवां व्यक्ति 60 साल से अधिक उम्र का होगा। इससे पेंशन और स्वास्थ्य सेवाओं पर भारी दबाव बढ़ेगा।

समाधान की दिशा में प्रयास-

इस चुनौती से निपटने के लिए देशों को दीर्घकालिक योजनाओं की जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, 2100 तक वैश्विक जनसंख्या पहले बढ़ेगी और फिर घटने लगेगी। भारत जैसे देशों को बुजुर्ग आबादी के लिए स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा योजनाएं अभी से तैयार करनी होंगी।

आधुनिक सोच और पारंपरिक मूल्यों के बीच संतुलन-

घटती फर्टिलिटी दर का समाधान केवल कानून बनाने से नहीं होगा। समाज को यह समझाना जरूरी है कि बच्चे भविष्य की नींव हैं और उनके लिए एक बेहतर माहौल तैयार करना हमारी जिम्मेदारी है।

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