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कश्मीर और पूर्वोत्तर में गेम-चेंजर बनेगी ये टेक्नोलॉजी! यूपी की 'ADRDE' के वैज्ञानिकों ने किया सफल परीक्षण

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भारत-पाकिस्तान सीमा पर जारी तनाव के बीच भारत ने एक बड़ी सैन्य तकनीकी उपलब्धि हासिल की है। आगरा स्थित एरियल डिलीवरी रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट (एडीआरडीई) के वैज्ञानिकों ने मध्य प्रदेश के श्योपुर में देश के पहले स्ट्रैटोस्फेरिक एयरशिप का सफल परीक्षण कर इतिहास रच दिया है। यह एयरशिप अब भारतीय सुरक्षा बलों के लिए आंख और कान की भूमिका निभाएगा, वो भी दुश्मन की नजरों से पूरी तरह बचकर।

17 किलोमीटर ऊंचाई से रियल टाइम निगरानी

वैज्ञानिकों के मुताबिक यह अत्याधुनिक एयरशिप स्ट्रैटोस्फियर की 17 किमी ऊंचाई पर लंबे समय तक स्थिर रहकर बड़े इलाके की निगरानी करने में सक्षम है। यह रियल टाइम डेटा भेज सकता है और इसकी सबसे खास बात यह है कि यह रडार की पकड़ में आए बिना निगरानी कर सकता है। यानी यह दुर्गम इलाकों में ऑपरेशन कर रहे भारतीय जवानों के लिए एक मूक लेकिन ताकतवर सहयोगी साबित हो सकता है।

कश्मीर और पूर्वोत्तर में निगरानी का गेम-चेंजर

विशेषज्ञों का मानना है कि यह एयरशिप कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश और अन्य सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा बलों की निगरानी क्षमताओं को कई गुना बढ़ा देगा। पारंपरिक ड्रोन या एयरक्राफ्ट के मुकाबले यह तकनीक ज्यादा ऊंचाई पर, ज्यादा समय तक, बिना शोर और बिना दिखे काम कर सकती है।

गगनयान मिशन में भी एडीआरडीई की भूमिका

सिर्फ रक्षा ही नहीं, अंतरिक्ष मिशन में भी एडीआरडीई के वैज्ञानिक अपना लोहा मनवा रहे हैं। संगठन ने इसरो के गगनयान मिशन के लिए एक विशेष क्लोजेट तैयार किया है, जो अंतरिक्ष यात्रियों के सुरक्षित लौटने में अहम भूमिका निभाएगा। यह क्लोजेट पैराशूट सिस्टम, टेक्सटाइल मैटेरियल और अन्य जरूरी उपकरणों को सुरक्षित रूप से स्टोर करने के लिए बनाया गया है, जिससे पैराशूट की उम्र 10 साल तक बढ़ाई जा सकेगी

30 हजार फीट की ऊंचाई से छलांग के लिए स्वदेशी पैराशूट

एडीआरडीई ने पैराट्रूपर्स के लिए एक और क्रांतिकारी सिस्टम विकसित किया है। अब भारतीय सैनिक 30,000 फीट की ऊंचाई से फ्री फॉल और स्टेटिक फॉल जंप कर सकेंगे। इस स्वदेशी सिस्टम में पैरा कंप्यूटर, ऑक्सीजन सपोर्ट, बैलिस्टिक हेलमेट और भारतीय नेविगेशन तकनीक शामिल है, जिससे सैनिक दुश्मन के क्षेत्र में सटीक तरीके से उतर सकते हैं।

क्या है स्ट्रैटोस्फेरिक एयरशिप?

यह एक विशाल, हल्के पदार्थ से बना उड़न यान है, जो स्ट्रैटोस्फियर (आमतौर पर 15–20 किमी ऊंचाई पर) में स्थिर रह सकता है। इसका उपयोग निगरानी, संचार और खुफिया डेटा एकत्र करने के लिए किया जाता है। यह उपग्रहों और ड्रोन के बीच की कड़ी मानी जाती है।

सीमाओं की सुरक्षा में आत्मनिर्भर भारत का 'मौन प्रहरी'

भारत की यह तकनीकी कामयाबी न सिर्फ सेना की ताकत बढ़ाने वाला कदम है, बल्कि यह देश को उच्च तकनीक युक्त निगरानी प्रणाली में आत्मनिर्भर बनाता है। आने वाले समय में यह एयरशिप सीमावर्ती इलाकों में भारतीय जवानों की जान बचाने वाला 'मूक रक्षक' बन सकता है।

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