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BJP स्थापना दिवस: भाजपा हनुमान जी के 'कैन डू’ एटीट्यूड की तरह एक्टिव है

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राजनीतिक दृष्टिकोण से आज का दिन बेहद ख़ास है। देश में सबसे ज्यादा सांसदों, विधायकों और पार्षदों के साथ लंबा सफ़र तय करने वाली सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टियों में से एक भारतीय जनता पार्टी आज अपना 44 वां स्थापना दिवस मना रही है। भाजपा के स्थापना दिवस के साथ आज हनुमान जयंती भी है। इस मौके पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। पीएम मोदी ने कहा कि भाजपा हनुमान जी के 'कैन डू’ एटीट्य़ूड की तरह ही काम करती है। आज तक जिन महान पुरुषों ने पार्टी को संवारा है, समृद्ध और सशक्त किया है, उन सभी कार्यकर्ताओं और नेताओं को मैं सर झुकाकर प्रणाम करता हूं। लोग कह रहें हैं कि 2024 में भाजपा को कोई नहीं हरा सकता, लेकिन हमें अति आत्मविश्वास का शिकार नहीं होना, बल्कि पार्टी कार्यकर्ता के रूप में सभी का दिल जीतना है। उन्होंने कहा कि भाजपा को 21वीं सदी की भविष्य की पार्टी बनाना है। 

जनसंघ से भाजपा तक का सफ़र 
आज ही के दिन यानी 6 अप्रैल 1980 को भाजपा की नीव रखी गई थी। पार्टी ने केवल दो सांसदों के साथ राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी, एक वक्त में जिसका खूब मजाक भी बना। लेकिन आज 303 सांसद के साथ भारतीय जनता पार्टी सत्ता में काबिज है। जवाहरलाल नेहरु की कांग्रेस का दामन छोड़ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इस पार्टी का गठन 1951 में किया। उस वक्त पार्टी को भारतीय जनसंघ के नाम से जाना जाता था और इसका गठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहयोग से किया गया था। 1952 के लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी को केवल तीन सीटों से ही संतोष करना पड़ा था। लेकिन 1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गई इमरजेंसी के बाद भारतीय जनसंघ को सफलता प्राप्त हुई। आपातकाल का विरोध करने के लिए जनसंघ के कई नेताओं को गिरफ्तार भी किया गया। लेकिन देश से इमरजेंसी हटने के बाद पार्टी ने कई छोटे-बड़े क्षेत्रीय दलों को साथ मिलाकर जनता पार्टी का गठन किया। 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने। 1980 में आपसी मतभेदों के कारण मोरारजी देसाई को पार्टी से इस्तीफा देना पड़ा जिसके बाद पार्टी भंग हो गई। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्णा आडवानी ने भारतीय जनता पार्टी का गठन किया। जिसके पहले अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी बने। पार्टी के गठन के बाद 1984 में लोकसभा चुनाव के परिणाम कुछ ख़ास नहीं रहें। केवल दो सांसद ही सदन तक पहुंचने में कामयाब हुए। लेकिन इसके बाद भी पार्टी के नेताओं ने हार नहीं मानी और 1990 के दशक से पार्टी के लिए तरक्की की राह खुल गई।

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