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ग्रामीण महिलाएं बनीं 'बैंकिंग सुपरवुमन'! इतने हजार महिलाओं को अपनी चौखट पर मिल रहा रोज़गार...

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उत्तर प्रदेश सरकार की 'बीसी सखी योजना' ने ग्रामीण भारत में बैंकिंग का चेहरा बदल दिया है। अब गांव की महिलाओं के हाथों में न केवल डिजिटल डिवाइस है, बल्कि आत्मनिर्भरता की चाबी भी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में शुरू की गई इस योजना ने 50,000 से अधिक महिलाओं को रोज़गार देकर उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बना दिया है।

39 हज़ार से अधिक बीसी सखी कर रही हैं सक्रिय काम

राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, अब तक 50,192 महिलाओं को बैंकिंग कोरेस्पोंडेंट (बीसी सखी) के रूप में प्रशिक्षित किया जा चुका है। इनमें से 39,561 महिलाएं सक्रिय रूप से कार्यरत हैं और अब तक ₹31,626 करोड़ रुपये का वित्तीय लेनदेन ग्रामीण क्षेत्रों में कर चुकी हैं। इन बीसी सखी को इसके बदले ₹85.81 करोड़ रुपये का लाभांश प्राप्त हुआ है।

बैंक अब गांव की चौखट पर

इस योजना के तहत गांव की महिलाएं अब मोबाइल डिवाइस के माध्यम से लोगों को घर बैठे बैंकिंग सेवाएं दे रही हैं — चाहे वो पैसा जमा करना हो, निकालना हो या सरकारी योजनाओं का लाभ। इससे गांव के बुज़ुर्ग, महिलाएं और अन्य लोग बिना लंबी लाइन में लगे अपने घर के पास ही बैंकिंग का लाभ उठा पा रहे हैं।

कौन बन सकती है बीसी सखी?

बीसी सखी बनने के लिए कुछ आवश्यक योग्यताएं तय की गई हैं:

  • उम्मीदवार ग्रामीण क्षेत्र की महिला होनी चाहिए।

  • न्यूनतम 10वीं पास और कंप्यूटर साक्षर होना जरूरी है।

  • महिला के खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं होना चाहिए।

सफल चयन के बाद महिलाओं को 6 महीने तक ₹4,000 प्रतिमाह मानदेय भी दिया जाता है। साथ ही हर ट्रांजेक्शन पर उन्हें कमीशन भी मिलता है।

बैंक ऑफ बड़ौदा, यूको बैंक और यूपीकॉन की साझेदारी

इस योजना की सफलता में बैंक ऑफ बड़ौदा, यूको बैंक और यूपीकॉन की सक्रिय भागीदारी है, जो प्रशिक्षण से लेकर तकनीकी सहायता तक में महिलाओं की मदद कर रहे हैं।

सिर्फ रोज़गार नहीं, सम्मान भी मिला

बीसी सखी योजना ने सिर्फ महिलाओं को रोज़गार ही नहीं दिया, बल्कि उन्हें गांव में नई पहचान और सम्मान भी दिलाया है। घर की चौखट से बाहर निकलकर अब महिलाएं फाइनेंशियल लीडर बन रही हैं, जो आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश के सपने को साकार कर रही हैं।

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