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कार और फर्नीचर से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स तक...अब बांस से बनेगा सब कुछ? जानिए कैसे!

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भारत ने पर्यावरण संरक्षण और स्वदेशी तकनीक के क्षेत्र में एक और ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) गुवाहाटी के वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक के एक ऐसे इको-फ्रेंडली विकल्प का विकास किया है, जो कारों के डैशबोर्ड, दरवाजों के पैनल, सीट बैकिंग जैसे हिस्सों के निर्माण में पारंपरिक प्लास्टिक और धातु की जगह ले सकता है। यह जैविक कंपोजिट स्थानीय बांस की प्रजाति बंबूसा टुल्डा और बायोडिग्रेडेबल पॉलिमर से मिलकर बनाया गया है।

हल्का, मजबूत और पर्यावरण के अनुकूल

इस नवीन सामग्री की सबसे बड़ी खासियत इसकी ऊष्मा सहनशीलता, मजबूती, और नमी अवशोषण में कमी है। वैज्ञानिकों का दावा है कि यह पारंपरिक प्लास्टिक की तुलना में अधिक टिकाऊ है और पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल यानी जैविक रूप से नष्ट हो जाने वाला है। IIT गुवाहाटी की डॉ. पूनम कुमारी के नेतृत्व में हुई इस रिसर्च में बताया गया है कि यह नवाचार न केवल ऑटोमोबाइल सेक्टर में, बल्कि एयरोस्पेस, इलेक्ट्रॉनिक्स, कंस्ट्रक्शन और फर्नीचर इंडस्ट्री में भी व्यापक संभावनाएं रखता है।

प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ बड़ी उम्मीद

गौरतलब है कि दुनिया भर में प्लास्टिक कचरा एक विकराल समस्या बन चुका है। सस्ते विकल्पों की कमी के कारण पर्यावरणीय संकट लगातार गहराता जा रहा है। ऐसे में यह बायो-कंपोजिट न केवल ग्रीन टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देगा, बल्कि भारत के मेक इन इंडिया, वोकल फॉर लोकल, और सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को भी मजबूती देगा।

मेक इन इंडिया और SDG लक्ष्यों को नई रफ्तार

डॉ. कुमारी ने बताया कि यह नवाचार SDG-7 (सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा), SDG-8 (सतत आर्थिक विकास) और SDG-9 (उद्योग, नवाचार और अवसंरचना) को प्राप्त करने में सहायक होगा। उन्होंने कहा, “यह भारत की घरेलू तकनीक क्षमता को भी दुनिया के सामने एक नई पहचान देगा।”

ग्रीन टेक्नोलॉजी में भारत की बड़ी छलांग

IIT गुवाहाटी की यह खोज दर्शाती है कि स्थानीय संसाधनों और वैज्ञानिक नवाचार के बल पर हम न केवल पर्यावरण संकट का हल खोज सकते हैं, बल्कि वैश्विक बाजार में भी टिकाऊ विकल्प पेश कर सकते हैं। यह खोज भारत को प्लास्टिक के विकल्प खोजने की वैश्विक दौड़ में अग्रणी देश बना सकती है।

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