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क्या फिर ज़मीन के नीचे दफन होगी इंसानियत? यूरोप में लौट रही है लैंडमाइंस की डरावनी यादें!

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1955 से 1975 तक चले वियतनाम युद्ध को दुनिया कभी नहीं भूल सकती। अमेरिका ने उस जंग में 75 से 80 लाख टन बम गिराए थे। बम सिर्फ दुश्मनों को मारने के लिए नहीं थे, बल्कि जंगल, गांव, खेत और ज़मीन को बंजर करने के लिए भी थे। वो जख्म आज भी जिंदा हैं। वियतनाम की एंबेसी के मुताबिक, आज भी करीब 3 लाख अनएक्सप्लोडेड बम (UXO) ज़मीन के नीचे दबे हुए हैं। हर बार खेत जोतने से पहले किसानों की रूह कांप जाती है—कहीं हल के साथ मौत न निकल आए।

रूस-यूक्रेन युद्ध से फिर लौटे लैंडमाइन!

अब वही खतरा फिर लौट आया है—इस बार यूरोप में। रूस और यूक्रेन की जंग को तीन साल से ज़्यादा हो चुके हैं। इस दौरान रूस ने कई इलाकों में बारूदी सुरंगें बिछाईं। अब पोलैंड, फिनलैंड और तीन बाल्टिक देश—एस्तोनिया, लातविया और लिथुआनिया—कह रहे हैं कि उन्हें भी लैंडमाइन बिछाने की इजाज़त दी जाए। इन देशों को डर है कि रूस सीमा पार हमला कर सकता है, और लैंडमाइन ही इसका जवाब हो सकते हैं।

सबसे बड़ा नुकसान किसे होगा? आम इंसान को!

लैंडमाइन बिछाने की रणनीति युद्ध में एक ढाल बन सकती है, लेकिन इसका सबसे बड़ा असर शांति के दिनों में आम लोगों पर होता है।

  • खेत जोतते वक्त बम फटना

  • बच्चे खेलते वक्त मौत का सामना करना

  • युद्ध के खत्म होने के बाद भी डर का माहौल

वियतनाम इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां आज भी लोग ज़मीन के नीचे छिपे बमों से डरते हैं।

लैंडमाइन का मतलब—सिर्फ सुरक्षा नहीं, स्थायी खतरा!

एक बार बिछाए गए लैंडमाइन दशकों तक नहीं फटते, लेकिन जानलेवा बने रहते हैं। यही वजह है कि कई देशों ने इन्हें अंतरराष्ट्रीय संधियों के तहत बैन कर रखा है। "बारूद के नीचे ज़िंदगी कोई नहीं डिज़र्व करता," ये लाइन वियतनाम से लेकर यूक्रेन तक, और अब शायद पूरे यूरोप तक गूंज रही है।

क्या युद्ध की तैयारी में इंसानियत फिर से दफन होगी?

जिस धरती पर शांति के फूल खिलने चाहिए, वहां फिर से बारूद बोने की तैयारी हो रही है। क्या युद्ध की आशंका में युद्ध जैसे हालात बना देना सही है? क्या हम फिर वही गलती दोहराने जा रहे हैं, जिससे दुनिया कभी उबर नहीं पाई?

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