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क्या ब्रह्मांड में मिलने वाला है दूसरा घर? वैज्ञानिकों ने खोजी नई उम्मीद की दिशा!

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बाह्य अंतरिक्ष की खोज में वैज्ञानिकों को एक बड़ी सफलता हाथ लगी है। अब पहली बार वैज्ञानिकों ने हमारे सौरमंडल से बाहर स्थित ग्रहों—जिन्हें एक्सोप्लैनेट कहा जाता है—के चुंबकीय क्षेत्रों की सीधी जांच करने का तरीका खोज निकाला है। यह उपलब्धि न केवल इन ग्रहों की आंतरिक संरचना को समझने में मदद करेगी, बल्कि यह भी बताएगी कि क्या ये ग्रह अपने आसपास के तारों को प्रभावित करते हैं, या फिर खुद जीवन के योग्य हो सकते हैं।

एक्सोप्लैनेट्स की मैग्नेटिक जांच

यह नई तकनीक “हान्ले और जीमन ध्रुवीकरण (Hanle & Zeeman Polarization)” के सिद्धांत पर आधारित है और इसका उपयोग पहले केवल सूर्य और हमारे सौरमंडल के ग्रहों पर ही होता रहा है। अब इसे बाह्यग्रहों पर लागू कर, वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष विज्ञान में एक बड़ा कदम बढ़ाया है।

क्यों है यह खोज महत्वपूर्ण?

अब तक वैज्ञानिकों की चुंबकीय क्षेत्रों को लेकर समझ सिर्फ हमारे आठ ग्रहों तक ही सीमित थी। लेकिन मंगल जैसे ग्रहों के अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ है कि चुंबकीय क्षेत्र की अनुपस्थिति ग्रह को बंजर बना सकती है। वहीं बृहस्पति जैसा विशाल ग्रह अपने शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र के कारण तूफानों और रेडिएशन से खुद को बचा लेता है। यही कारण है कि चुंबकीय क्षेत्र न केवल ग्रह की सतह की रक्षा करते हैं, बल्कि उसके वातावरण और जलवायु प्रणाली पर भी गहरा असर डालते हैं। इस खोज से यह जानने का रास्ता खुलेगा कि क्या किसी एक्सोप्लैनेट पर जीवन संभव हो सकता है या नहीं।

किन ग्रहों पर हो रहा है परीक्षण?

फिलहाल यह तकनीक मुख्यतः हॉट ज्यूपिटर जैसे बड़े ग्रहों पर इस्तेमाल की जा रही है, जो अपने मूल तारे के अत्यंत करीब चक्कर लगाते हैं। ऐसे ग्रहों के वायुमंडल से बड़ी संख्या में फोटॉन गुजरते हैं, जिससे हान्ले और जीमन प्रभाव का मापन संभव हो पाता है। छोटे ग्रहों या उन ग्रहों पर जो अपने तारों से दूर हैं, यह तकनीक अभी कारगर नहीं है।

भविष्य की योजनाएं: नासा का ‘एचडब्ल्यूओ’ मिशन

इस दिशा में अगला बड़ा कदम नासा के “हैबिटेबल वर्ल्ड्स ऑब्जर्वेटरी” (Habitable Worlds Observatory - HWO) मिशन के रूप में देखा जा रहा है, जिसे अगले 15 वर्षों में लॉन्च किया जाना है। यह मिशन विशेष रूप से जीवन की संभावना वाले बाह्यग्रहों की खोज और उनके वातावरण व चुंबकीय गुणों की जाँच के लिए तैयार किया जा रहा है। तब तक वैज्ञानिक मौजूदा अंतरिक्ष वेधशालाओं और ज़मीन आधारित उपकरणों के जरिए प्रारंभिक परीक्षण करते रहेंगे।

क्या भविष्य का घर कहीं और है?

यह खोज केवल खगोल विज्ञान में एक तकनीकी उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह सवालों की एक नई श्रृंखला भी खोलती है—क्या ब्रह्मांड में जीवन केवल पृथ्वी तक सीमित है? क्या दूसरे ग्रह भी हमारे जैसे सुरक्षा तंत्र विकसित कर सकते हैं? और क्या एक्सोप्लैनेट्स केवल खगोलीय रोचकताएं हैं, या वे भविष्य के जीवन के संभावित ठिकाने बन सकते हैं? अब जब हमारे पास इन ग्रहों के चुंबकीय गुणों को समझने की तकनीक है, तो भविष्य में अंतरिक्ष विज्ञान की दिशा और गहराई—दोनों बदलती दिखाई दे सकती हैं।

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