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बाघों की मौत का सस्पेंस! 4 साल में जंगल से बाहर कैसे मरे 341 टाइगर ?

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भारत के जंगल एक बार फिर बाघों की गूंज से जीवंत हो उठे हैं। भारत ने दुनिया के सामने अपनी बाघ समृद्धि का प्रमाण पेश किया है। देश में अब कुल 3,682 बाघ खुले जंगलों और अभयारण्यों में विचरण कर रहे हैं, जो वैश्विक बाघ आबादी का एक बड़ा हिस्सा है। लेकिन इस चमक के पीछे एक गंभीर चिंता भी है — बाघों की मौत और अभयारण्यों के बाहर उनकी सुरक्षा की चुनौती। पिछले चार वर्षों में 667 बाघों की मौत हुई, जिनमें से 341 यानी 51% बाघ अभयारण्यों के बाहर मारे गए।

बाघों की मौत: महाराष्ट्र और एमपी में सबसे ज्यादा

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के आंकड़ों के मुताबिक,

  • महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 111 बाघों की मौत दर्ज की गई,

  • इसके बाद मध्य प्रदेश में 90 मौतें हुईं।

यह आंकड़े बता रहे हैं कि बाघ अब सिर्फ अभयारण्यों में नहीं रह रहे, बल्कि बाहर भी अपना इलाका बना रहे हैं — जहां उनके संरक्षण की चुनौती और बढ़ जाती है।

सरकार की नई योजना: टीओटीआर परियोजना और पुनर्वास मिशन

इस चुनौती से निपटने के लिए सरकार एक नई योजना Tigers Outside Tiger Reserves (TOTR) पर काम कर रही है, जो 17 राज्यों के 80 वन प्रभागों को कवर करेगी। इस परियोजना का उद्देश्य उन बाघों की सुरक्षा करना है, जो अभयारण्यों की सीमाओं से बाहर रह रहे हैं।

इसके अलावा, केंद्र सरकार ग्रामीण पुनर्वास, मानव-बाघ संघर्ष को कम करने, और वैश्विक स्तर पर International Big Cat Alliance (IBCA) जैसे प्रयासों के जरिए बाघ संरक्षण की दिशा में ठोस पहल कर रही है।

कहां हैं सबसे ज्यादा बाघ? (2022 अनुमान के अनुसार)

राज्य अनुमानित बाघों की संख्या
मध्य प्रदेश 785
कर्नाटक 563
उत्तराखंड 560
महाराष्ट्र 444
तमिलनाडु 306
असम 229
केरल 213
उत्तर प्रदेश 205

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने बताया कि वर्ष 2014 में जहां देश में 46 टाइगर रिजर्व थे, वहीं अब इनकी संख्या बढ़कर 58 हो चुकी है।

असम में भी बाघों की संख्या में उछाल

असम के काजीरंगा नेशनल पार्क और टाइगर रिजर्व (KNPTR) में बाघों की संख्या अब बढ़कर 148 हो गई है। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के अनुसार, असम अब दुनिया में तीसरे सबसे ज्यादा बाघ घनत्व वाले क्षेत्रों में शुमार हो गया है।

KNPTR की रिपोर्ट के मुताबिक:

  • 83 बाघ मादा हैं

  • 55 नर बाघ

  • 10 के लिंग की जानकारी फिलहाल नहीं

गर्व और ज़िम्मेदारी दोनों साथ

भारत में बाघों की संख्या बढ़ना निश्चित रूप से एक गर्व की बात है, लेकिन संरक्षण का अगला युद्ध अब अभयारण्यों से बाहर के जंगलों में लड़ा जाना है। इंसानों और बाघों के बीच का संतुलन बनाए रखना आने वाले वर्षों में बाघों के भविष्य को तय करेगा।

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