बड़ी खबरें

अलास्का में पुतिन के तेवर दिखे नरम, लेकिन समझौते पर नहीं बनी सहमति एक दिन पहले मुंबई में भारी बारिश से हाहाकार, जगह-जगह जलभराव ने बढ़ाई आफत; विक्रोली में भूस्खलन से दो की मौत एक दिन पहले Kishtwar Cloudburst: मृतकों के परिजनों को दो लाख देगी सरकार, घायलों को भी मिलेगी राशि एक दिन पहले

'बड़की कुर्सी' पर सफेद तौलिया: सत्ता का प्रतीक या अहंकार का प्रदर्शन?

Blog Image

सरकारी दफ्तरों, बैठकों और सभाओं में सफेद तौलिया वाली कुर्सियों का चलन अक्सर लोगों का ध्यान आकर्षित करता है। यह कुर्सी अन्य कुर्सियों से ऊंची, चमचमाती और विशेष रूप से पहचानी जाती है। सवाल यह उठता है कि यह सफेद तौलिया आखिर किसका प्रतीक है? क्या यह जनता की सेवा का प्रतिनिधित्व करता है, या फिर सत्ता के अहंकार का?

सफेद तौलिये की परंपरा: इतिहास और कारण

सफेद तौलिये का उपयोग एक लंबे समय से सत्ता और विशेषाधिकार का प्रतीक माना जाता है। साल 2022 में एक IRTS अधिकारी के ट्वीट ने इस परंपरा पर सवाल उठाए। उन्होंने लिखा, "अगर कमरे में 10 एक जैसी कुर्सियां हैं, तो सीनियर की कुर्सी कैसे पहचाने? बस उस पर सफेद तौलिया रख दीजिए।" सोशल मीडिया पर यह बयान काफी चर्चा में रहा और लोगों ने पूछा कि आखिर क्यों यह तौलिया सिर्फ ताकतवर लोगों की कुर्सियों पर होता है?

इसके पीछे कई थ्योरीज हैं।

  • ब्रिटिश राज से प्रेरणा: यह कहा जाता है कि ब्रिटिश हुकूमत के अधिकारी अपनी कुर्सियों पर तौलिया रखते थे। आजादी के बाद भी यह परंपरा समाप्त नहीं हुई।
  • सैन्य परंपरा: दूसरे विश्व युद्ध के दौरान कुछ सैन्य अधिकारियों ने इसे फैशन के रूप में अपनाया।
  • स्टेटस सिंबल: भारतीय राजनीति और प्रशासन में तौलिया एक स्टेटस सिंबल के रूप में देखा जाता है। हालांकि, अब तौलियों के रंग भी बदलने लगे हैं। नेताओं और अफसरों की पसंद और विचारधारा के आधार पर अलग-अलग रंगों के तौलिये उपयोग में लाए जा रहे हैं।

ताजा विवाद: कुर्सी की ऊंचाई और सत्ता का सम्मान

हाल ही में उत्तर प्रदेश में एक आपातकालीन बैठक ने इस परंपरा को फिर से चर्चा में ला दिया। बैठक का उद्देश्य नेताओं और अधिकारियों के बीच बराबरी का व्यवहार सुनिश्चित करना था। मामला तब बढ़ा, जब एक विधायक ने शिकायत की कि अधिकारियों को ऊंची कुर्सियों पर बैठाया गया, जिन पर सफेद तौलिये बिछे थे, जबकि निर्वाचित प्रतिनिधियों को साधारण कुर्सियों पर बैठाया गया। एक विधायक ने यहां तक कहा, "अगर अधिकारी हमारे साथ ऐसा करते हैं, तो आम जनता के साथ उनका व्यवहार कैसा होगा?" यह स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि मुख्य सचिव को दखल देना पड़ा। इसके बाद 7 अक्टूबर को एक सरकारी आदेश जारी किया गया, जिसमें इस विषय को लेकर सख्त निर्देश दिए गए।

सचिवालय का सफेद तौलिया प्रोटोकॉल

उत्तर प्रदेश के सचिवालय में सफेद तौलिये का उपयोग नियमित प्रोटोकॉल का हिस्सा है।

  • हर सोमवार और गुरुवार को सचिवालय में लगभग 1,000 तौलिये बदले जाते हैं।
  • मुख्यमंत्री के भगवा रंग को छोड़कर, अधिकांश तौलिये सफेद होते हैं।
  • तौलियों का आकार मानक (180x90 सेमी) रखा गया है।
  • तौलियों की खरीद अलग-अलग विभागों द्वारा अनुमोदित एजेंसियों से की जाती है।

सत्ता का प्रतीक बनाम सेवा का उद्देश्य

सफेद तौलिया केवल एक कपड़ा नहीं है; यह सत्ता और विशेषाधिकार का प्रतीक है। यह उस दीवार का निर्माण करता है, जो शासकों और जनता के बीच दूरी को बढ़ाता है। यह परंपरा जनता और जनसेवा के मूल उद्देश्य को पीछे छोड़कर केवल सत्ता प्रदर्शन तक सिमट गई है।

सवाल और समाधान-

जब लोकतंत्र में सत्ता का खेल कुर्सी की ऊंचाई और तौलिये के रंग तक सीमित हो जाए, तो सवाल उठना लाजमी है। सफेद तौलिया उस मानसिकता का प्रतीक बन चुका है, जहां जनसेवा से ज्यादा महत्व सत्ता प्रदर्शन को दिया जाता है। अब समय आ गया है कि नेता और अधिकारी जनता के मूलभूत मुद्दों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और जनकल्याण पर ध्यान केंद्रित करें। उन्हें यह समझना होगा कि उनकी कुर्सी और तौलिये का महत्व जनता के अधिकारों और उम्मीदों से ऊपर नहीं हो सकता।

वास्तविक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करें-

सफेद तौलिये वाली कुर्सी का इतिहास चाहे जो भी हो, इसे सत्ता और जनता के बीच की दूरी को मिटाने की दिशा में बदलने की आवश्यकता है। लोकतंत्र का असली उद्देश्य जनता की सेवा और कल्याण है, न कि कुर्सी और तौलिये के माध्यम से विशेषाधिकार का प्रदर्शन। समय आ गया है कि हम इन प्रतीकों को त्यागकर वास्तविक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करें।

अन्य ख़बरें

संबंधित खबरें