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चरम पर है उत्तर-मध्य भारत में 'मृतजन्म दर,' चौंकाने वाली हैं वजहें!

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गोरखपुर एम्स और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के शोधकर्ताओं की एक नई रिपोर्ट ने भारत में गर्भ में शिशु मृत्यु दर (Stillbirth rate) को लेकर चौंकाने वाले तथ्य उजागर किए हैं। अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2020 में हर 1,000 प्रसव में औसतन 6.54 मामलों में बच्चे का जन्म मृत हुआ—यानी डिलीवरी से पहले ही गर्भ में उसकी मौत हो चुकी थी।

उत्तर-मध्य भारत में मृतजन्म दर चरम पर

सबसे अहम बात यह है कि यह समस्या ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी माताओं में ज्यादा देखी गई। शोध के मुताबिक, उत्तर और मध्य भारत मृत जन्म के मामलों में सबसे आगे हैं, जिसमें चंडीगढ़, जम्मू-कश्मीर और राजस्थान शीर्ष पर हैं।

मुख्य कारण और आंकड़े

  • जहां गर्भवती महिलाओं में एनीमिया और कम वजन की समस्या ज्यादा थी, वहां मृत जन्म की दर ऊंची रही।

  • स्वच्छ मासिक धर्म आदतें और ऑपरेशन के जरिए डिलीवरी (C-section) ने मृत जन्म के मामलों को घटाने में मदद की, खासकर तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु में।

  • दक्षिण भारत में 2019-20 के दौरान करीब 45% प्रसव सिजेरियन से हुए, जिससे बेहतर नतीजे सामने आए।

राज्यवार अध्ययन के नतीजे

  • असम, मेघालय, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ में यह पाया गया कि गर्भावस्था में कम से कम चार बार डॉक्टर से जांच और आयरन-फोलिक एसिड की गोलियों का सेवन मृत जन्म के खतरे को काफी कम करता है।

  • जहां गरीबी ज्यादा थी, डिलीवरी मुख्य रूप से सरकारी अस्पतालों में होती थी और एनीमिया के मामले अधिक थे, वहां मृत जन्म की दर ऊंची रही।

समय पर इलाज और पोषण से घटेगी गर्भ में शिशु मृत्यु

अध्ययन में लड़का और लड़की के मामलों में बड़ा अंतर नहीं मिला, लेकिन लड़कों में मृत जन्म की दर थोड़ी अधिक थी, जिसे शोधकर्ताओं ने उनकी जैविक कमजोरी से जोड़ा। विशेषज्ञों का मानना है कि समय पर स्वास्थ्य जांच, पोषण सुधार और मातृ स्वास्थ्य पर फोकस करके इस समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

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