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देश के न्यायिक इतिहास में पहली बार किसी कार्यरत हाईकोर्ट जज के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हुई है। दिल्ली हाईकोर्ट के जज रहे और वर्तमान में इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर किए गए जस्टिस यशवंत वर्मा पर लगे भ्रष्टाचार और बेहिसाब नकदी के आरोपों के बाद संसद में उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया गया है।
आज़ाद भारत में पहली बार हाईकोर्ट जज पर महाभियोग
21 जुलाई को मानसून सत्र के पहले ही दिन, लोकसभा और राज्यसभा के कुल 215 सांसदों ने प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर इसे पीठासीन अधिकारियों को सौंपा। लोकसभा में 152 और राज्यसभा में 63 सांसदों ने प्रस्ताव का समर्थन किया, जिनमें भाजपा, कांग्रेस, टीडीपी, जेडीयू, सीपीएम सहित कई दलों के प्रमुख नेता शामिल हैं। राहुल गांधी, अनुराग ठाकुर, रविशंकर प्रसाद, सुप्रिया सुले, पीपी चौधरी जैसे दिग्गजों के नाम इस सूची में हैं।
कैश कांड से उठे सवाल
पूरा मामला 14 मार्च की रात सामने आया जब जस्टिस वर्मा के लुटियंस स्थित बंगले में आग लग गई थी। बाद में जांच में पता चला कि घर के स्टोर रूम में 500-500 रुपये के जले हुए नोटों से भरे बोरे पड़े थे। अनुमान है कि करीब 15 करोड़ रुपये नकद मिले थे, जिनमें से कई नोट जल चुके थे।
CJI की कमेटी ने ठहराया दोषी
कैश कांड के बाद तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने 22 मार्च को एक तीन सदस्यीय जांच समिति बनाई। 4 मई को समिति ने अपनी रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा को दोषी ठहराया और ‘इन-हाउस प्रोसीजर’ के तहत उन्हें हटाने की सिफारिश की। इस समिति में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जीएस संधवालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की जज अनु शिवरामन शामिल थीं।
संसद में अब आगे क्या?
संसद अब संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 के तहत प्रक्रिया अपनाएगी। न्यायाधीश जांच अधिनियम 1968 के तहत संयुक्त जांच समिति बनेगी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ जज, किसी हाईकोर्ट के मौजूदा मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित न्यायविद होंगे।
यह समिति तीन महीनों के भीतर रिपोर्ट तैयार कर संसद को सौंपेगी, जिसके बाद सदन में चर्चा और मतदान होगा।
रिपोर्ट में गंभीर टिप्पणियां
19 जून को सामने आई सुप्रीम कोर्ट पैनल की 64 पन्नों की रिपोर्ट में कहा गया कि जस्टिस वर्मा और उनके परिवार का उस स्टोर रूम पर "सीक्रेट या एक्टिव कंट्रोल" था जहां से नकदी मिली। 55 गवाहों से पूछताछ और घटनास्थल का निरीक्षण कर यह निष्कर्ष निकाला गया कि आरोपों में पर्याप्त साक्ष्य हैं, और ये इतने गंभीर हैं कि जस्टिस वर्मा को पद पर बने रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजी गई सिफारिश
CJI खन्ना ने 8 मई को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर महाभियोग चलाने की सिफारिश की थी। उसी की परिणति संसद में महाभियोग प्रस्ताव के रूप में देखने को मिली। यह मामला न केवल भारतीय न्यायपालिका के भीतर पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता को रेखांकित करता है, बल्कि यह भी साबित करता है कि कानून की नजर में कोई भी व्यक्ति—even एक उच्च न्यायालय का न्यायाधीश—अपराध से ऊपर नहीं है। संसद और न्यायपालिका के संयुक्त प्रयासों से न्याय की प्रक्रिया एक नई दिशा में अग्रसर होती दिखाई दे रही है।
Baten UP Ki Desk
Published : 22 July, 2025, 1:03 pm
Author Info : Baten UP Ki