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जिसे अंग्रेजों ने मिटाना चाहा, वही बन गया आज़ादी की पहली चिंगारी!

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आज से ठीक 198 साल पहले, 19 जुलाई 1827 को एक ऐसा सिपाही इस धरती पर जन्मा, जिसने न सिर्फ ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिला दिया, बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम की पहली चिंगारी भी भड़काई। नाम था—मंगल पांडे। यह वही नाम है जिसे इतिहास मिटा देना चाहता था, लेकिन वह इतिहास खुद बन गया। भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम (1857 की क्रांति) का सूत्रधार, वह सिपाही जिसने गोली चलाकर अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ खुली बगावत की शुरुआत की।

जब डर अंग्रेज़ों को निगलने लगा

1857 की बात है। मंगल पांडे को नई एनफील्ड राइफल दी गई, जिसके कारतूस में गाय और सूअर की चर्बी की बात फैली। यह हिन्दू-मुस्लिम सिपाहियों के धार्मिक विश्वासों पर सीधा हमला था। मंगल पांडे चुप नहीं रहे। उन्होंने 29 मार्च 1857 को खुलकर अंग्रेज़ अफसरों पर हमला किया, और अंग्रेज़ सत्ता की नींव हिल गई।

जब फाँसी की तारीख भी बदल दी गई

अंग्रेज़ों ने उन्हें फाँसी देने की तारीख तय की थी—18 अप्रैल 1857। लेकिन डर इतना था कि अंग्रेज़ों ने 10 दिन पहले, यानी 8 अप्रैल को ही, चुपचाप उन्हें फाँसी दे दी। क्यों? क्योंकि बैरकों में बगावत की बयार थी, सिपाही साथ खड़े होने को तैयार थे, और अंग्रेज़ जान गए थे—अगर ये आदमी ज़िंदा रहा, तो अंग्रेज़ी हुकूमत ज़िंदा नहीं बचेगी

लेकिन जो होना था, वो होकर ही रहा

मंगल पांडे की शहादत के सिर्फ़ 1 महीने बाद, 10 मई 1857 को मेरठ से शुरू हुई वो महान बगावत, जिसने पूरे देश को आज़ादी की पहली आवाज़ दी।

आज का दिन क्यों अहम है?

आज जब हम आज़ादी का अमृतकाल मना रहे हैं, हमें याद रखना होगा कि यह स्वतंत्रता किसी एक दस्तावेज़ से नहीं, बल्कि एक जवान की बंदूक से शुरू हुई थी, जिसने डर के खिलाफ गोली चलाई थी।

मंगल पांडे को शत-शत नमन

आज उनकी 198वीं जयंती पर उन्हें याद करना सिर्फ एक रस्म नहीं, एक ज़िम्मेदारी है। क्योंकि आज भी देश को वैसे ही साहस, बलिदान और स्वाभिमान की ज़रूरत है, जैसा मंगल पांडे ने दिखाया।

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