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अधर में है भारत की आधी आबादी का भविष्य! इतने फीसदी पहुंची महिला बेरोजगारी दर

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देश में बेरोजगारी को लेकर ताजा आंकड़े चिंताजनक तस्वीर पेश कर रहे हैं। भारत के स्टेटिस्टिक्स ऑफिस की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, जून 2025 में 15-29 वर्ष की आयु के युवाओं में बेरोजगारी दर बढ़कर 15.3 प्रतिशत हो गई है, जो मई में 15 प्रतिशत थी। खास तौर पर युवा महिलाओं में बेरोजगारी दर और तेजी से बढ़ी है — 16.3 प्रतिशत से बढ़कर 17.4 प्रतिशत हो गई। वहीं, पुरुषों में यह दर मामूली बढ़कर 14.5 से 14.7 प्रतिशत पर पहुंच गई।

शहरी बेरोजगारी दर ज्यादा

15 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों में समग्र बेरोजगारी दर जून में 5.6 प्रतिशत रही, जो मई के मुकाबले अपरिवर्तित है।

  • शहरी क्षेत्रों में यह दर 7.1 प्रतिशत से अधिक दर्ज की गई

  • जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 4.9 प्रतिशत रही।

महिलाओं में जून में बेरोजगारी दर 5.6 प्रतिशत रही, जो मई के 5.8 प्रतिशत से थोड़ी कम है।

घटा लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट (LFPR)

जून में लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट (LFPR) 54.2 प्रतिशत दर्ज किया गया, जो मई में 54.8 प्रतिशत था।

  • ग्रामीण क्षेत्रों में यह दर 56.1 प्रतिशत रही

  • शहरी क्षेत्रों में 50.4 प्रतिशत रही।

वर्कर पॉपुलेशन रेशो (WPR) भी गिरा

वर्कर पॉपुलेशन रेशो जून में घटकर 51.2 प्रतिशत रह गया, जबकि मई में यह 51.7 प्रतिशत था।

  • ग्रामीण क्षेत्रों में WPR 53.3 प्रतिशत

  • शहरी क्षेत्रों में 46.8 प्रतिशत रहा।

ग्रामीण महिला श्रमिकों की हिस्सेदारी में गिरावट

रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण महिला श्रमिकों की हिस्सेदारी में गिरावट देखी गई है।

  • मई में 70.2 प्रतिशत महिला श्रमिक कृषि क्षेत्र में कार्यरत थीं

  • जून में यह आंकड़ा घटकर 69.8 प्रतिशत पर आ गया।

स्टेटिस्टिक्स ऑफिस के मुताबिक, इस गिरावट के पीछे कई मौसमी और सामाजिक कारण हैं—जैसे भीषण गर्मी, कृषि चक्र में बदलाव और महिलाओं द्वारा घरेलू कार्यों में लौटना।

महिला श्रमिकों की घटती भागीदारी बढ़ा रही चिंता

श्रम विशेषज्ञों का कहना है कि युवा बेरोजगारी दर में लगातार बढ़ोतरी गंभीर चिंता का विषय है। खासतौर पर महिलाओं की श्रम बाजार से बाहर होती भागीदारी न केवल आर्थिक विकास को प्रभावित करती है, बल्कि लैंगिक असमानता को भी और गहरा करती है। देश में रोजगार के मोर्चे पर सुधार की उम्मीदें तब तक अधूरी रहेंगी जब तक युवाओं, खासकर महिलाओं के लिए टिकाऊ और समान अवसर नहीं बनाए जाते। सरकार और नीति-निर्माताओं के लिए यह आंकड़े एक चेतावनी हैं कि उन्हें युवाओं की रोजगार जरूरतों को प्राथमिकता देनी होगी।

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