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2 सेकंड में ले लिया फैसला, 1200 जिंदगियां बचा गए दो पायलट – जानिए आखिरी पलों की बहादुरी

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राजस्थान के चूरू जिले में 9 जुलाई को भारतीय वायु सेना का एक जगुआर फाइटर जेट भयानक हादसे का शिकार हो गया। यह हादसा न केवल देश के लिए एक दर्दनाक क्षण था, बल्कि दो जांबाज़ पायलटों के सर्वोच्च बलिदान की कहानी भी बन गया, जिन्होंने अपनी जान देकर गांव के 1200 से ज्यादा परिवारों की जान बचाई। हादसे में स्क्वॉड्रन लीडर लोकेंद्र सिंह सिंधु (44) और फ्लाइट लेफ्टिनेंट ऋषिराज (23) शहीद हो गए। एक की जड़ें हरियाणा के रोहतक में थीं, जबकि दूसरा राजस्थान के पाली जिले के खिंवादी गांव का रहने वाला था।

अगर पायलट चाहते तो गांव पर गिरा सकते थे जेट

हादसे के प्रत्यक्षदर्शी ग्रामीणों का कहना है कि पायलटों ने आखिरी सांस तक कोशिश की कि फाइटर जेट आबादी वाले इलाके पर न गिरे। भानुदा चारनान और विदावतान गांवों में रहने वाले करीब 1200 परिवारों की जान इन दोनों जवानों की सूझबूझ और बलिदान से बच पाई। ग्रामीण मोहित शर्मा भावुक होकर कहते हैं, "अगर फाइटर जेट गांव के ऊपर गिरता तो तबाही की कोई सीमा नहीं होती। दोनों शहीद पायलटों ने हमारी जिंदगी बचाई है।"

ऐसा लगा जैसे बम फटा हो

घटना बुधवार दोपहर करीब 12:40 बजे हुई, जब एक गवाह मनोज प्रजापत ने आसमान में जगुआर को डगमगाते देखा। उसने बताया, "जेट अचानक एक पेड़ से टकराया और जमीन पर 100 मीटर तक घिसटता गया। फिर जोरदार धमाका हुआ... जैसे कोई बम फटा हो।" विजय शर्मा, जो कुछ ही मिनटों बाद घटनास्थल पर पहुंचे, बताते हैं कि "100 से 200 मीटर के दायरे में पायलटों के शरीर के टुकड़े और प्लेन का मलबा बिखरा पड़ा था। चारों ओर बस तबाही ही तबाही थी।"

पास जाकर देखा... कुछ नहीं बचा था

16 वर्षीय धोनी चारण का बयान दिल को झकझोर देता है। वह कहता है, "हम सोच रहे थे कि शायद कोई बच गया हो... लेकिन जब पास पहुंचे तो शरीर के टुकड़े, जलती हुई घास और राख में बदल चुका इलाका ही नजर आया।" ग्रामीणों के मुताबिक, हादसे के चंद मिनटों में ही आसपास के 20 से 30 किलोमीटर के गांवों से 1500 से ज्यादा लोग मौके पर इकट्ठा हो गए। प्रशासन, पुलिस और सेना भी जल्द मौके पर पहुंची।

हादसे वाली जगह से सिर्फ 2 किमी दूर है रिहायशी इलाका

हादसा भानुदा गांव से महज 2 किलोमीटर दूर सुनसान इलाके में हुआ। गांव के लोग बताते हैं कि कुछ महीने पहले ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी इस इलाके में मिसाइल का टुकड़ा गिरा था। यह जगुआर क्रैश उसी जगह से महज डेढ़ किलोमीटर दूर हुआ।

सेना ने संभाला मोर्चा, गांव बना छावनी

घटनास्थल को सुरक्षा घेरे में लेते हुए एयरफोर्स और सेना की टीमें देर रात तक मलबा इकट्ठा करती रहीं। इलाके में टेंट लगाकर वीडियोग्राफी, फोटोग्राफी और साक्ष्य एकत्र किए गए। गांव जाने वाले मुख्य रास्ते को बंद कर दिया गया, जिससे ग्रामीणों को 14 किलोमीटर का अतिरिक्त चक्कर लगाना पड़ा।

देश ने दो सपूत खोए, लेकिन सैकड़ों जिंदगियां बचीं

भारतीय वायु सेना ने दो जांबाज पायलट खो दिए, लेकिन उनकी बहादुरी ने सैकड़ों लोगों की जान बचा ली। लोकेंद्र सिंह सिंधु और ऋषिराज अब देश के लिए प्रेरणा बन चुके हैं। गांववालों की आंखों में आंसू हैं, लेकिन दिल में गर्व है।

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