बड़ी खबरें

पीएम मोदी ने 51,000 युवाओं को बांटे नियुक्ति पत्र; बोले- बिना पर्ची, बिना खर्ची हो रही भर्ती एक घंटा पहले निष्क्रिय हालत में मिले थ्रस्ट लीवर..., एअर इंडिया विमान के डाटा ने बताई कुछ और ही हकीकत एक घंटा पहले UP में बजा पंचायत चुनाव का बिगुल, मतदाता सर्वेक्षण 14 अगस्त से; इस तरह से जोड़े जाएंगे नए वोटर एक घंटा पहले IND vs ENG लॉर्ड्स टेस्ट, भारत 242 रन पीछे:पंत और राहुल नॉटआउट लौटे 10 मिनट पहले

गायों का दूध कम क्यों हो रहा है? ये कारण बहुत चौंकाने वाला है!

Blog Image

जलवायु परिवर्तन अब खेत-खलिहानों तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि इसका असर अब सीधे आपकी रसोई तक पहुंच चुका है। एक ताज़ा अंतरराष्ट्रीय अध्ययन के मुताबिक, बढ़ती गर्मी और उमस का सीधा असर अब गायों के दूध उत्पादन पर पड़ने लगा है। शोधकर्ताओं ने चेताया है कि भारत जैसे गर्म और आर्द्र जलवायु वाले देशों में प्रति गाय दूध उत्पादन में औसतन 3.5 से 4% की गिरावट दर्ज की जा सकती है — जो देश की पोषण सुरक्षा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था दोनों के लिए गंभीर खतरा बन सकती है।

12 वर्षों के आंकड़ों से खुलासा

यह शोध इस्राइल की हिब्रू यूनिवर्सिटी ऑफ यरुशलम, तेल अवीव यूनिवर्सिटी और अमेरिका के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है। अध्ययन में इस्राइल की 1.3 लाख से अधिक गायों के 2010 से 2022 तक के दूध उत्पादन और मौसम से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। 300 से अधिक डेयरी फार्मों से प्राप्त फील्ड डेटा ने यह स्पष्ट किया कि जैसे ही वेट बल्ब तापमान (गर्मी + आर्द्रता का संयुक्त सूचकांक) 26 डिग्री सेल्सियस के पार जाता है, गायों में हीट स्ट्रेस शुरू हो जाता है, जिससे दूध उत्पादन 10% तक घट सकता है।

भारत सबसे अधिक जोखिम में

भारत में गर्मी के साथ-साथ उमस भी आम है। गर्मियों में वेट बल्ब तापमान अक्सर 28 से 30 डिग्री तक पहुंच जाता है, जो गायों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। भारत न केवल दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है, बल्कि देश की 70% ग्रामीण आबादी किसी न किसी रूप में दूध उत्पादन या पशुपालन से जुड़ी है। 2023 में भारत में कुल 23.9 करोड़ टन दूध का उत्पादन हुआ था। ऐसे में यह गिरावट करोड़ों परिवारों की आजीविका पर असर डाल सकती है।

तकनीक मददगार लेकिन पर्याप्त नहीं

शोध में बताया गया कि इस्राइल जैसे देशों में वेंटिलेशन, पानी के छिड़काव और शेड्स जैसी तकनीकों से नुकसान को 40–50% तक जरूर रोका जा सकता है, लेकिन जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, इन उपायों की प्रभावशीलता भी घटती जाती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि भारत जैसे देशों में इन तकनीकों में निवेश जरूरी है, क्योंकि किसान लागत 1 से 1.5 वर्षों में वसूल सकते हैं।

दुग्ध संकट बन सकता है वैश्विक संकट

विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, वैश्विक स्तर पर करीब 15 करोड़ परिवार दूध उत्पादन से जीविका चलाते हैं। लेकिन सबसे बड़ी निर्भरता दक्षिण एशिया पर है। यदि यहां दूध उत्पादन में गिरावट आती है, तो इसका असर वैश्विक सप्लाई चेन, दूध की कीमतों और व्यापार संतुलन पर भी पड़ेगा। भारत जैसे देश यदि गर्मी से दूध उत्पादन नहीं संभाल सके, तो वैश्विक बाजार भी प्रभावित होगा।

नीतियों और व्यवहार दोनों में बदलाव जरूरी

शोधकर्ता इस बात पर ज़ोर देते हैं कि केवल तकनीक से समाधान नहीं निकलेगा। नीति-निर्माताओं को चाहिए कि पशु कल्याण आधारित व्यवहारिक सुधारों पर भी ध्यान दें। मसलन, गायों को खुला और ठंडा वातावरण देना, साफ पानी की नियमित उपलब्धता सुनिश्चित करना, बछड़ों से अनावश्यक अलगाव से बचना — ये सभी उपाय गायों के तनाव को कम कर सकते हैं और उत्पादन स्थिर रख सकते हैं।

दूध पर भी ‘क्लाइमेट टैग’ जरूरी

दूध अब केवल पोषण का साधन नहीं रहा। भारत में यह सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक धरोहर है। ऐसे में जलवायु रणनीतियों में दूध उत्पादन को विशेष स्थान देना होगा। अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में दूध की हर बूंद पर बढ़ती गर्मी का बोझ महसूस होगा।

दूध की हर बूंद पर तपते मौसम का असर

जलवायु संकट अब महज पिघलती बर्फ या सूखते जंगलों की कहानी नहीं रहा। यह सीधे आम जनजीवन और रोजमर्रा की जरूरतों पर असर डाल रहा है। दूध जैसे आधारभूत खाद्य उत्पाद पर मंडराते संकट को हल्के में लेना भारत जैसे देश के लिए भारी पड़ सकता है। अब वक्त आ गया है कि दूध को भी जलवायु नीति की प्राथमिकता बनाया जाए।

अन्य ख़बरें

संबंधित खबरें