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क्या जातिगत आंकड़ों से खुलेगा सामाजिक न्याय का नया रास्ता? इस तारीख से शुरू होगी गणना!

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केंद्र सरकार ने लंबे समय से चली आ रही मांग को मानते हुए जातिगत जनगणना कराने की आधिकारिक घोषणा कर दी है। सरकार की योजना के अनुसार, अक्तूबर 2026 से लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में इस प्रक्रिया की शुरुआत होगी, जबकि देश के अन्य हिस्सों में मार्च 2027 से जातीय जनगणना कराई जाएगी।

PM के ऐलान पर सरकार ने उठाया कदम

यह फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उस घोषणा के बाद आया है, जिसमें उन्होंने 30 अप्रैल 2025 को जनगणना को जातीय आधार पर कराने की बात कही थी। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने भी कैबिनेट मीटिंग के बाद इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि अबकी बार जनगणना में नागरिकों की जाति आधारित गणना भी की जाएगी।

जातिगत जनगणना क्या है और क्यों है चर्चा में?

आमतौर पर हर दस साल में होने वाली जनगणना में नागरिकों की संख्या, आयु, शिक्षा, लिंग, भाषा आदि जानकारियां एकत्र की जाती हैं। लेकिन जातिगत जनगणना का उद्देश्य है—सभी जातियों की सटीक सामाजिक और आर्थिक स्थिति का आकलन करना।

आज़ादी के बाद से अब तक सिर्फ अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की जनसंख्या के आंकड़े ही जारी होते रहे हैं। पिछड़ी जातियों (OBC) की गणना आखिरी बार 1931 में हुई थी, जिसके आधार पर मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू की गईं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह डेटा अब प्रासंगिक नहीं रह गया है।

भारत में जातिगत जनगणना का इतिहास

  • 1881: पहली बार जाति आधारित जनगणना हुई।

  • 1931: पिछड़ी जातियों की अंतिम बार गणना हुई।

  • 1941: आंकड़े जुटाए गए लेकिन प्रकाशित नहीं हुए।

  • 1951-2011: केवल SC/ST के आंकड़े जारी हुए, OBC की गणना नहीं की गई।

ज़रूरत बनाम विरोध

जातिगत जनगणना के पक्ष में तर्क है कि इससे सरकार को पिछड़े वर्गों की वास्तविक संख्या और स्थिति का ज्ञान होगा। इसके आधार पर नीतियां, शिक्षा, रोजगार, और आरक्षण जैसे मुद्दों पर सटीक योजनाएं बनाई जा सकेंगी।वहीं, इसका विरोध करने वालों का कहना है कि इस तरह की गणना से जातीय विभाजन, राजनीतिक ध्रुवीकरण, और सामाजिक तनाव बढ़ सकता है।

राज्य स्तरीय जातिगत सर्वेक्षणों की स्थिति

बिहार (2023)

  • पिछड़ा वर्ग: 27%

  • अति पिछड़ा वर्ग: 36%

  • SC: 20%

  • सामान्य वर्ग: 15%

तेलंगाना (2025)

  • OBC (हिंदू + मुस्लिम): 56.33%

  • SC: 17.43%

  • ST: 10.45%

  • अन्य जातियां: 13.31%

कर्नाटक (2017 रिपोर्ट)

  • रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई।

  • 192 नई जातियां दर्ज हुईं, जिससे विवाद पैदा हुआ।

क्या बदलेगा जातिगत जनगणना से?

विशेषज्ञों के मुताबिक, जातिगत जनगणना के बाद:

  • आरक्षण की सीमाएं बदली जा सकती हैं।

  • पिछड़े वर्गों की नीतियों की दिशा बदलेगी।

  • राजनीतिक दलों की रणनीतियों में बड़ा बदलाव संभव है।

क्या जातिगत आंकड़ों से खुलेगा सामाजिक न्याय का नया रास्ता?

जातिगत जनगणना को लेकर वर्षों से मांग और विवाद दोनों रहे हैं। लेकिन अब केंद्र सरकार के फैसले के साथ यह स्पष्ट हो गया है कि देश पहली बार जातिगत स्तर पर आधिकारिक जनगणना की ओर बढ़ रहा है। इससे सामाजिक न्याय की दिशा में नई शुरुआत तो होगी ही, साथ ही यह आंकड़े भविष्य की नीति निर्धारण में क्रांतिकारी भूमिका निभा सकते हैं।

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