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जब अंग्रेजों ने जला दीं मुंशी प्रेमचंद की 500 किताबें!

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जहाँ क्रांतिकारी अपने प्राणों की आहुति दे रहे थे, वहीं कलम के सिपाही भी अपनी लेखनी से आज़ादी की लौ जला रहे थे। इन्हीं में एक नाम था—हिंदी साहित्य के महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद का, जिनकी एक किताब अंग्रेजों को इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने इसकी 500 प्रतियां जब्त कर सरेआम जला दीं।

बात वर्ष 1909 की है, जब अंग्रेजी हुकूमत अपने चरम पर थी और हर विरोधी स्वर को दबाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही थी। ऐसे में मुंशी प्रेमचंद की देशभक्ति से ओत-प्रोत पांच कहानियों का संग्रह ‘सोज़े वतन’ प्रकाशित हुआ, जिसने ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी। इसका अर्थ था—‘देश का दर्द’, और इसकी कहानियाँ गुलामी की जंजीरों को तोड़ने का संदेश दे रही थीं।

बताया जाता है कि हमीरपुर के तत्कालीन अंग्रेज कलेक्टर ने इसे राजद्रोह मानते हुए प्रेमचंद को अपने दरबार में तलब किया। कलेक्टर ने न सिर्फ उन्हें कड़ी फटकार लगाई, बल्कि उनके हाथ काटने की धमकी तक दे डाली। अंततः 500 किताबें जब्त कर जनता के सामने जला दी गईं।

हमीरपुर प्रवास में जली विद्रोह की ज्वाला

मुंशी प्रेमचंद का हमीरपुर प्रवास (1908-1914) उनके साहित्यिक जीवन का स्वर्णकाल माना जाता है। डिप्टी इंस्पेक्टर के पद पर रहते हुए भी उन्होंने समाज की गूढ़ सच्चाइयों को उजागर करने का साहस किया। इस दौरान उनकी लेखनी और भी प्रखर हुई और ‘रानी सारंधा’, ‘राजा हरदौल’ और ‘विक्रमादित्य का तेज’ जैसी कालजयी रचनाएँ सामने आईं।

कौन थे मुंशी प्रेमचंद?

31 जुलाई 1880 को बनारस के लमही गांव में जन्मे धनपतराय, आगे चलकर साहित्य की दुनिया में मुंशी प्रेमचंद के नाम से अमर हो गए। समाज के दबे-कुचले वर्ग को आवाज़ देने वाले प्रेमचंद को लोग स्नेह से ‘नवाब राय’ भी कहते थे।

प्रेमचंद की लेखनी आज भी प्रासंगिक

8 अक्टूबर 1936 को यह महान कथाशिल्पी दुनिया से विदा हो गया, लेकिन उनकी लेखनी आज भी जीवंत है। गोदान, गबन, निर्मला, कर्मभूमि जैसी कृतियाँ आज भी समाज का आईना बनी हुई हैं। मुंशी प्रेमचंद ने जो अलख जलाई थी, वह समय के साथ धुंधली नहीं हुई, बल्कि और प्रखर होती गई। आज जब साहित्य और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर फिर से सवाल उठाए जा रहे हैं, तो प्रेमचंद की यह घटना हमें याद दिलाती है कि कलम की ताकत किसी भी सत्ता से बड़ी होती है।

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