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उपराष्ट्रपति चुनाव 2025: BJP का ‘तमिल मास्टरस्ट्रोक’,दोराहे पर फंसी DMK!

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उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 का मुकाबला इस बार सिर्फ़ सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच की जंग नहीं है, बल्कि इसमें तमिलनाडु की राजनीति भी केंद्र में आ गई है। बीजेपी ने अपने उम्मीदवार के रूप में वरिष्ठ नेता सी.पी. राधाकृष्णन का नाम सामने लाकर न सिर्फ़ विपक्ष को चौका दिया है, बल्कि डीएमके (DMK) और उसके प्रमुख एम.के. स्टालिन को गहरे राजनीतिक संकट में डाल दिया है।

क्यों चुने गए C.P. Radhakrishnan?

सी.पी. राधाकृष्णन तमिलनाडु बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं। उनकी छवि साफ-सुथरी और non-controversial मानी जाती है। यही कारण है कि बीजेपी ने उन्हें उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए उतारा। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह सिर्फ़ चुनावी कदम नहीं बल्कि एक सोचा-समझा political masterstroke है।

DMK के सामने बड़ा Dilemma

अब सवाल यह है कि स्टालिन किस रास्ते का चुनाव करेंगे।

  1. Congress और INDIA alliance के साथ रहकर सी.पी.आर. का विरोध करें।

  2. Tamil identity और pride के नाम पर उनका समर्थन करें।

  3. या फिर वोटिंग से दूरी बना लें।

लेकिन तीनों ही हालात में बीजेपी को ही राजनीतिक लाभ मिलता दिख रहा है।

पर्दे के पीछे की मुलाकातें

11 अगस्त को सी.पी. राधाकृष्णन ने चेन्नई में मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन से मुलाकात की। आधिकारिक रूप से इसे स्वास्थ्य संबंधी शिष्टाचार भेंट बताया गया, लेकिन इसकी political timing ने सवाल खड़े कर दिए। इसी बीच डीएमके सांसद और करुणानिधि की बेटी कनिमोझी ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दिल्ली में मुलाकात की। भले ही उन्होंने इसे "constituency issues" बताया हो, लेकिन घटनाक्रम ने विपक्ष की बेचैनी और बढ़ा दी।

बीजेपी का असली Target

बीजेपी का असली मकसद सिर्फ़ चुनाव जीतना नहीं बल्कि Congress को isolate करना है। तमिलनाडु में पार्टी की स्थिति मज़बूत नहीं है, लेकिन अगर डीएमके neutral रहती है या बीजेपी उम्मीदवार को समर्थन देती है, तो कांग्रेस की राजनीतिक साख को ज़बरदस्त झटका लगेगा।
याद दिला दें, उपराष्ट्रपति चुनाव 2022 में जब जगदीप धनखड़ उम्मीदवार थे, तब ममता बनर्जी की टीएमसी ने भी वोटिंग से दूरी बना ली थी। अब वही रणनीति तमिलनाडु में दोहराई जा रही है।

अब क्या होगा आगे?

अगर डीएमके सी.पी. राधाकृष्णन का समर्थन करती है तो कांग्रेस के लिए यह betrayal माना जाएगा। अगर डीएमके neutral रहती है, तो कांग्रेस कमजोर दिखेगी। और अगर डीएमके कांग्रेस के साथ जाती है, तो बीजेपी इसे anti-Tamil move करार दे सकती है। यानी हर हाल में बाज़ी बीजेपी के हाथ में ही जाती दिख रही है। यही वजह है कि इसे “Masterstroke of BJP” कहा जा रहा है। अब सबकी निगाहें एम.के. स्टालिन के अगले कदम पर हैं—क्या वो alliance loyalty निभाएंगे, Tamil pride को प्राथमिकता देंगे, या फिर कोई safe game खेलेंगे? इस फैसले का असर सिर्फ़ उपराष्ट्रपति चुनाव तक नहीं बल्कि लोकसभा चुनाव 2029 तक देखने को मिल सकता है।

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