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सुप्रीम कोर्ट ने दिव्यांगों के लिए पुनर्वास नीति बनाने वाली याचिका पर केंद्र को जारी किया नोटिस

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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (JJ Act, 2015) के तहत विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की देखभाल के लिए दिशानिर्देश की मांग करने वाली एक जनहित याचिका पर नोटिस जारी करते हुए केंद्र और अन्य से जवाब मांगा है। इतना ही कोर्ट ने केंद्र सरकार से उनका पक्ष कोर्ट के सामने अगली तारीख पर रखने को कहा है। दरअसल, कोर्ट में पूर्व पत्रकार केएसआर मेनन द्वारा एक याचिका दायर की गई थी। जिसमें मानसिक और शारीरिक रूप से विकलांग लोगों के पुनर्वास और सामाजिक पुनर्मिलन के लिए दिशानिर्देश तैयार करने की मांग की गई। जिनकी 18 साल की उम्र के बाद देखभाल करने वाला कोई नहीं है। 

पूर्व पत्रकार केएसआर मेनन द्वारा दायर की गई थी याचिका-

आपको बता दे कि मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने पूर्व पत्रकार केएसआर मेनन द्वारा दायर याचिका पर ध्यान दिया, जिस याचिका में दिव्यांग बच्चों की 18 की आयु के बाद देखभाल की सुविधाएं प्रदान करने के लिए एक नीति या दिशानिर्देश तैयार करने की मांग की गई थी। इस फैसले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की ने पीठ ने नोटिस जारी करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका में जो शिकायत की गई है, वह यह है कि एक्ट की धारा 2(14)(iv) के तहत परिभाषा के अंतर्गत आने वाले देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता वाले बच्चों की देखभाल के संबंध में कोई प्रावधान नहीं हैं। JJ Act, 2015 के तहत 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद इसे 21 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। इसके अलावा केंद्रीय एजेंसियों को सेवा देने की छूट दी गई। मामले को 4 सप्ताह के बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा।

कौन करेगा 18 की आयु पूर्ण कर चुके दिव्यांगों की देखभाल-

दरअसल, याचिकाकर्ता केएसआर मेनन ने कहा कि JJ Act, 2015 की धारा 2(14)(iv) के तहत परिभाषित "देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता वाले बच्चे" के लिए कोई स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं हैं। इन बच्चों में मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग बच्चे, लाइलाज या लाइलाज बीमारी से पीड़ित बच्चे, और ऐसे बच्चे शामिल हैं जिनके माता-पिता या अभिभावक उन्हें छोड़ चुके हैं या उनकी देखभाल करने में असमर्थ हैं। याचिका में कहा गया है कि जब ये बच्चे 18 वर्ष की आयु प्राप्त करते हैं, तो उन्हें बाल देखभाल संस्थानों (सीसीआई) से निकाल दिया जाता है। इससे उन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से अलग-थलग कर दिया जाता है, और उन्हें अपने जीवन में आगे बढ़ने में कठिनाई होती है। वहीं आफ्टर केयर की व्यवस्था को असल लाभार्थियों तक पहुंचाने के लिहाज से इस न्यायिक कारवाही को बेहद महत्वपूर्ण और सार्थक माना जा रहा है।

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