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बंगाल में ममता मैजिक, बिहार में निर्दलीय उम्मीदवार की जीत, उपचुनाव में कुछ ऐसा रहा है राजनीति का मिज़ाज..

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देश के 7 राज्यों की 13 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे आ चुके हैं। बिहार की रुपौली विधानसभा सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार की जीत ने सबको चौंका दिया है। यह जीत सिर्फ राजनीतिक विश्लेषकों के लिए ही नहीं, बल्कि आम जनता के लिए भी एक बड़ा विषय बन गई है। दूसरी ओर, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का जादू एक बार फिर से चलता दिखाई दे रहा है, जहां तृणमूल कांग्रेस ने भारी बहुमत से जीत हासिल की है।

इन सीटों पर हुई थी वोटिंग-

सभी 13 सीटों पर 10 जुलाई को वोटिंग हुई थी। जिन सात राज्यों में मतदान हुआ था उनमें बिहार, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं। 

सीएम भंगवंत मान ने पास की अग्नि परीक्षा-

पंजाब में जालंधर पश्चिम विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव को मुख्यमंत्री भगवंत मान के लिए अग्निपरीक्षा माना जा रहा था, जिसमें उनके उम्मीदवार मोहिंदर भगत ने जीत दर्ज की। वहीं, हिमाचल में भाजपा के गढ़ कांगड़ा की देहरा सीट पर सीएम सुक्खू की पत्नी जीत गई हैं। कांग्रेस ने 4, टीएमसी ने 4, भाजपा ने 2, AAP, डीएमके  और निर्दलीय ने 1-1 सीट पर जीत हासिल की है। 

किसको फायदा और किसको हुआ नुकसान?

इन 13 सीटों में भाजपा के पास 3 सीटें थीं, कांग्रेस के पास 2, टीएमसी के पास 1, जेडीयू 1, आप 1, डीएमके 1, बीएसपी 1 और निर्दलीय के पास 3 सीटें थीं। यानी भाजपा को 1 और JDU को 1 सीट मिलाकर दो सीटों का नुकसान हुआ। कांग्रेस को 2 और TMC को 3 सीटों का फायदा हुआ है।

कैसे हुई निर्दलीय उम्मीदवार की जीत?

बिहार की रुपौली विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार की जीत ने सभी राजनीतिक दलों को चौंका दिया है। इस जीत के पीछे कई कारक हो सकते हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

स्थानीय मुद्दे और वादे: निर्दलीय उम्मीदवार ने स्थानीय मुद्दों को प्रमुखता से उठाया और जनता को भरोसा दिलाया कि वे उनकी समस्याओं को सुलझाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

जनता का विश्वास: निर्दलीय उम्मीदवार के पास जनता का व्यापक समर्थन था। उनके साथ जनता का व्यक्तिगत संबंध और उनका जनता के बीच रहकर काम करना उन्हें विजय दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

राजनीतिक दलों से असंतोष: प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रति जनता का असंतोष भी एक महत्वपूर्ण कारण रहा। पिछले चुनावों में वादों की पूर्ति न होने के कारण जनता ने निर्दलीय उम्मीदवार को एक विकल्प के रूप में देखा।

बंगाल में चला ममता का मैजिक

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने एक बार फिर से अपनी धाक जमाई है।ममता बनर्जी की लगातार तीसरी बार जीत ने यह दर्शाया है कि उनका नेतृत्व और उनकी नीतियां जनता के बीच अभी भी लोकप्रिय हैं। ममता बनर्जी की इस जीत के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं-

महिला सशक्तिकरण: ममता बनर्जी ने अपने शासनकाल में महिला सशक्तिकरण पर जोर दिया है। उनके द्वारा शुरू की गई योजनाओं और नीतियों का लाभ सीधे महिलाओं को मिला है, जिससे उनकी लोकप्रियता में वृद्धि हुई है।

1-विकास कार्य: ममता बनर्जी की सरकार ने कई विकास कार्य किए हैं, जिनमें सड़कों का निर्माण, स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार, और शिक्षा के क्षेत्र में नए कदम शामिल हैं। इन विकास कार्यों का जनता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

2-राजनीतिक कुशलता: ममता बनर्जी की राजनीतिक कुशलता और उनके सशक्त नेतृत्व ने उन्हें चुनावी मैदान में एक अजेय शक्ति बना दिया है।

3-सांप्रदायिक सौहार्द: ममता बनर्जी ने बंगाल में सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने हमेशा समाज को एकजुट रखने की कोशिश की है, जिसका असर चुनाव परिणामों पर भी दिखाई देता है।

निर्दलीय जीत और भारतीय राजनीति का बदलता मिज़ाज-

बिहार की रुपौली सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार की जीत और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की जीत, दोनों ही घटनाएं भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण बदलावों की ओर इशारा करती हैं। एक ओर जहां निर्दलीय उम्मीदवार की जीत ने यह साबित किया है कि जनता अब पारंपरिक राजनीतिक दलों से हटकर नए विकल्पों की ओर देख रही है। यह घटना भारतीय राजनीति के बदलते मिजाज को दर्शाती है और आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि इन घटनाओं का भविष्य की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता है।

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