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क्या आपने कभी बिना किसी कारण बेचैनी महसूस की है… सिर्फ इस सोच से कि पृथ्वी का भविष्य कैसा होगा? अगर हाँ, तो आप अकेले नहीं हैं। एक नए अंतरराष्ट्रीय अध्ययन ने यह चौंकाने वाला खुलासा किया है कि जलवायु परिवर्तन अब सिर्फ एक भौतिक संकट नहीं, बल्कि एक गहराता हुआ मानसिक संकट भी बन चुका है — खासकर महिलाओं, युवाओं और पर्यावरण को लेकर संवेदनशील लोगों के लिए।
27 देशों के 1.7 लाख लोगों में बढ़ती क्लाइमेट एंग्जायटी
जर्मनी की लीपजिग यूनिवर्सिटी और टीयू डॉर्टमुंड यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए इस मेटा-विश्लेषण में 27 देशों के 1.7 लाख से अधिक प्रतिभागियों को शामिल किया गया, जिनमें से बड़ी संख्या में लोगों ने "क्लाइमेट एंग्जायटी" यानी जलवायु चिंता को लेकर गहन असहजता, बेचैनी और भय की भावना जाहिर की।
जलवायु चिंता: नई उम्र की मानसिक चुनौती?
इस अध्ययन में पाया गया कि "क्लाइमेट एंग्जायटी" सामान्य चिंता से अलग है। यह उस गहरे डर और असहायता से जुड़ी है, जो व्यक्ति को तब महसूस होती है जब वह जलवायु संकट के असर को महसूस करता है लेकिन खुद को बेबस पाता है।
इसका असर खासतौर पर:
युवा वर्ग
महिलाएं
प्रकृति के प्रति संवेदनशील लोग
वामपंथी या प्रगतिशील सोच वाले समूहों में अधिक देखा गया।
यह चिंता न केवल मानसिक अस्थिरता का कारण बन रही है, बल्कि प्रेरणा का स्रोत भी बन सकती है, बशर्ते इसे समझा और संभाला जाए।
ग्लोबल साउथ के लिए चेतावनी की घंटी
हालांकि इस रिसर्च के ज़्यादातर डेटा विकसित देशों से लिए गए हैं, लेकिन शोधकर्ता मानते हैं कि वास्तविक संकट ग्लोबल साउथ में और भी गंभीर हो सकता है, क्योंकि यहां जलवायु परिवर्तन के असर सीधे तौर पर जीवन और आजीविका से जुड़े हैं। सोचिए, जब एक विकसित देश का युवा ग्लेशियर पिघलते देखकर घबरा जाता है, तो एक किसान, जो लगातार सूखा और बाढ़ झेल रहा है, उसकी मानसिक स्थिति कैसी होगी?
नेताओं और समाज की बड़ी जिम्मेदारी
अध्ययन से जुड़े वैज्ञानिक हेंस जैचर का मानना है कि जलवायु चिंता को "हवा में उड़ाना" खतरनाक है। उन्होंने कहा, “यह डर सिर्फ डर नहीं है, यह चेतावनी है — और शायद बदलाव का शुरुआती बिंदु भी।”
वे सुझाव देते हैं कि:
नेताओं को इस चिंता को नीतियों में जगह देनी चाहिए
स्कूलों और कॉलेजों में मानसिक सहयोग केंद्र बनने चाहिए
मीडिया को डर बेचने की बजाय समाधान की दिशा में संवाद करना चाहिए
और सबसे ज़रूरी — संवेदनशीलता को कमजोरी नहीं, ताकत समझा जाए
पिघलती बर्फ से ज़्यादा खतरनाक है पिघलता हौसला
जलवायु संकट पर बात करते वक्त हम अक्सर पिघलते ग्लेशियर, सूखा या बाढ़ की बात करते हैं। लेकिन इस अध्ययन ने दिखाया है कि "पिघलती चीजें सिर्फ बर्फ नहीं, भरोसा और मानसिक स्थिरता भी है।" अब वक्त आ गया है कि हम इस मानसिक संकट को उतनी ही गंभीरता से लें, जितनी एक तूफान या सूखे को लेते हैं। क्योंकि अगर मन टूट गया, तो बदलाव की उम्मीद भी टूट जाएगी।
Baten UP Ki Desk
Published : 2 July, 2025, 1:33 pm
Author Info : Baten UP Ki