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अब पेंडिंग केसेज का होगा समाधान

अगर आप भी लंबे समय से कोर्ट में पेंडिंग केसेज को लेकर परेशान हैं तो  आपके लिए खुशखबरी है। उत्तर प्रदेश में 21 मई को राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन होने जा रहा है। इसमें वैवाहिक, पारिवारिक विवाद, सिविल कोर्ट के मामले, फौजदारी एवं राजस्व संबंधित पेंडिंग केसेज के साथ-साथ प्री-लिटिगेशन मुकदमों का समाधान आपसी सुलह-समझौते के साथ कराया जाएगा। 

क्या है लोक अदालत- लोक अदालत यानी ‘पीपल्स कोर्ट’ जिसे कोर्ट में लंबित विवादों का निपटान करने के एक वैकल्पिक तरीके के रूप में देखा जाता है। इसे सरल शब्दों में समझे तो यह आपसी सुलह या बातचीत की एक प्रणाली है। यह एक ऐसा मंच है जहां अदालत में लंबित मामलों (या विवाद) या जो मुकदमेबाजी से पहले के चरण में हैं, उन 2 पक्षों में समझौता कराया जाता है। 
ऐसी अदालतों को विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987(Legal Services Authorities Act, 1987) के तहत वैधानिक दर्जा दिया गया है। इस अधिनियम के तहत, लोक अदालतों द्वारा दिए गए निर्णय को सिविल न्यायालय का निर्णय माना जाता है, जो सभी पक्षों पर आखिरी फैसला और बाध्यकारी होता है। ऐसे निर्णय के बीच किसी भी अदालत के कानून के समक्ष अपील नहीं की जा सकती है।

लोक अदालत की स्थापना कब और क्यों की गई- लोक अदालत की स्थापना का विचार सबसे पहले भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी.एन.भगवती द्वारा दिया गया था। जिसके बाद पहली लोक अदालत का आयोजन साल 1982 में गुजरात में किया गया। इसके बाद साल 2002 से लोक अदालतों को स्थायी बना दिया गया। दरअसल, संविधान के अनुच्छेद 39A समाज के वंचित और कमजोर वर्गों को निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करने की बात करता है और समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा देता है। संविधान के अनुच्छेद 14 और 22(1) भी राज्य के लिए कानून के समक्ष समानता की गारंटी देना अनिवार्य करता हैं। अब बात कर लेते हैं लोक अदालत से होने वाले लाभ के बारें में..न्‍यायिक सेवा अधिकारियों द्वारा आयोजित लोक अदालतें (राज्‍य स्‍तरीय और राष्‍ट्रीय) वैकल्पिक विवाद समाधान का एक तरीका है। इसमें मुकदमाबाजी से पूर्व और अदालतों में लंबित मामलों को मैत्रीपूर्ण आधार पर सुलझाया जाता है।
इन अदालतों में निःशुल्क सुनवाई होती है, जिससे तर्क करने वालों पर अनावश्यक आर्थिक भार नहीं पड़ता है। यदि न्यायालय में लंबित मुकदमें में कोर्टं शुल्क जमा करवाया जाता है तो लोक अदालत में विवाद के निपटारे के बाद वह शुल्क वापस कर दी जाती है।
लोक अदालत के माध्यम से मुकदमों की तेजी से सुनवाई होती है, मुकदमे से संबंधित पक्षों को तेजी से एक राय पर लाया जाता है। इससे दोनों पक्षों को कठिन न्‍यायिक प्रणाली के बोझ से छुटकारा मिलता है। 

 

 

 

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