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अंटार्कटिका में रिसर्च सेंटर को क्यों कहना पड़ रहा गुडबाय

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(Special Story) जहां एक ओर अंतरिक्ष में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर इसरो झंडे गाड़ रहा है। तो वहीं दूसरी ओर पृथ्वी के सबसे दक्षिणी महाद्वीप और बर्फीले ध्रुवीय क्षेत्र अंटार्कटिका में भी अपना दम दिखा रहा है। यहां भारती और मैत्री के नाम के दो रिसर्च सेंटर जलवायु परिवर्तन से लेकर समुद्री विज्ञान, भूविज्ञान और अन्य क्षेत्रों के अनुसंधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इस तरह से इसरो का रिसर्च नेटवर्क बेंगलुरु की संकरी गलियों से लेकर अंटार्कटिका की ठंडी दुनिया तक फैला हुआ है। अब भारत इस रिसर्च को मजबूती देने के लिए पूर्वी अंटार्कटिका में एक नए रिसर्च स्टेशन 'मैत्री 2' का भी निर्माण करेगा।

क्या है मैत्री का इतिहास-

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आपको बता दे कि साल 1888 में अंटार्कटिका में मैत्री नाम का भारत का दूसरा स्थायी अनुसंधान केंद्र बनाया गया था। जिस पथरीले पहाड़ी क्षेत्र पर मैत्री  स्थित है, उसे ‘शिरमाकर ओएसिस’ कहा जाता है। यह समुद्र तल से लगभग 50 मीटर की ऊँचाई पर तट से लगभग 100 किमी दूर एक अंतर्देशीय स्टेशन है। गर्मियों के दौरान इसके मुख्य भवन में 25 व्यक्तियों की रहने की व्यवस्था है। इस स्टेशन में एक मुख्य भवन, ईंधन फार्म, ईंधन स्टेशन, झील के पानी का पंप हाउस, एक ग्रीष्मकालीन शिविर और कई छोटे कंटेनरीकृत मॉड्यूल शामिल हैं।

अंटार्कटिका: भारत के भारती अनुसंधान केंद्र की मनमोहक तस्वीरें

मुख्य भवन में बिजली की आपूर्ति, गर्म और ठंडे पानी के साथ ऑटोमैटिक हीटिंग, इंसीनेटर टॉयलेट कोल्ड स्टोरेज, पीए सिस्टम, रहने-खाने की व्यवस्था के साथ लाउंज और कंटेनरीकृत प्रयोगशाला है। इसके अलावा सैटेलाइट के जरिये भारत के साथ वीडियो और डेटा कनेक्टिविटी की सुविधा भी है। मैत्री के चारों ओर एक मीठे पानी की झील भी बनाई गई है, जिसे प्रियदर्शनी झील के नाम से जाना जाता है। अब सवाल ये है कि जब  मैत्री स्टेशन इतना बेहतर है तो मैत्री-2 बनाने की क्या जरूरत पड़ गयी। 

क्यों पड़ी मैत्री-2 बनाने की आवश्कता-

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दरअसल, मौजूदा मैत्री स्टेशन को केवल दस वर्षों के लिए चालू किया जाना था। हालांकि यह अब तक काम कर रहा है लेकिन ज्यादा गुणवत्तापूर्ण रिसर्च के लिए मैत्री-2 बनाया जायेगा। जिसे पूर्वी अंटार्कटिका में मौजूदा स्टेशन के पास ही स्थापित किया जाएगा। जिसमें लगभग 90 वैज्ञानिकों के रहने की व्यवस्था होगी। जानकारों की माने तो रणनीतिक तौर पर भी ऐसा करना जरुरी हो गया है क्योंकि चीन पहले से ही इस महाद्वीप पर अपना पांचवां अनुसंधान बनाने की तैयारी कर रहा है। जिसके लिए उसने 450 से अधिक कर्मियों को बर्फीले महाद्वीप में भेजा है। यही वजह है कि अब भारत को भी इस ओर कदम बढ़ाने की जरूरत है।

मैत्री 2 तकनीकों से होगा लैस-

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जिसके चलते अब 'मैत्री 2' स्टेशन मॉडर्न तकनीकों से लैस होगा। जहां अनुसंधान उपकरण और प्रयोगशालाएं भी होंगी। साथ ही स्टेशन पर्यावरण के अनुकूल होगा और अंटार्कटिका के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान नहीं पहुंचाएगा। हालांकि अंटार्कटिका में निर्माण कार्य करना एक बड़ी चुनौती है लेकिन भारत सरकार इन चुनौतियों का सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार है, और 'मैत्री 2' स्टेशन के निर्माण को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है। साल 2029 तक इस स्टेशन के निर्माण से भारत अंटार्कटिका में अनुसंधान के क्षेत्र में अग्रणी देश बनकर उभरेगा। 

-कोमल

 

 

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