बड़ी खबरें

अलास्का में पुतिन के तेवर दिखे नरम, लेकिन समझौते पर नहीं बनी सहमति 18 घंटे पहले मुंबई में भारी बारिश से हाहाकार, जगह-जगह जलभराव ने बढ़ाई आफत; विक्रोली में भूस्खलन से दो की मौत 17 घंटे पहले Kishtwar Cloudburst: मृतकों के परिजनों को दो लाख देगी सरकार, घायलों को भी मिलेगी राशि 14 घंटे पहले

बेहतर भविष्य के लिए कितना जरूरी है भोजन का अधिकार?

Blog Image

16 अक्टूबर को हर साल मनाया जाने वाला विश्व खाद्य दिवस भोजन और पोषण सुरक्षा पर वैश्विक ध्यान आकर्षित करने का अवसर प्रदान करता है। इसे संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य खाद्य उत्पादन में सुधार, कुपोषण से निपटना, और दुनिया भर में भूख को समाप्त करना है। इस वर्ष 2024 के विश्व खाद्य दिवस की थीम है "बेहतर जीवन और बेहतर भविष्य के लिए भोजन का अधिकार", जो हर व्यक्ति के लिए पर्याप्त और सुरक्षित भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करने पर बल देता है।

वर्तमान खाद्य संकट और चुनौतीपूर्ण स्थिति

खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति (SOFI) रिपोर्ट के अनुसार, विश्व भर में 2.33 अरब लोग खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। कोविड-19 महामारी और हालिया भू-राजनीतिक संकटों ने इस स्थिति को और बिगाड़ा है। हालांकि, भारत जैसे कृषि प्रधान देश, जहाँ खाद्य उत्पादन में निरंतर वृद्धि हो रही है, इस संकट को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। फिर भी, ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2023 के मुताबिक, भारत की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। 125 देशों में भारत का 111वां स्थान बताता है कि खाद्य सुरक्षा के मामले में अभी काफी सुधार की आवश्यकता है।

भोजन का अधिकार और भारत का राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम

भारत में भोजन का अधिकार 2013 में पारित राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के माध्यम से कानूनी रूप में परिभाषित किया गया। इस अधिनियम के तहत, देश की लगभग दो-तिहाई आबादी को रियायती दरों पर खाद्य सामग्री उपलब्ध कराई जाती है। इस योजना के तहत, 75% ग्रामीण और 50% शहरी आबादी को सब्सिडी वाला अनाज प्रदान किया जाता है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) और पीएम पोषण योजना जैसी योजनाओं ने महामारी के दौरान और बाद में भी भोजन के अधिकार को मजबूत किया।

भारत की वैश्विक खाद्य सुरक्षा में भूमिका-

भारत वैश्विक खाद्य उत्पादन में एक प्रमुख खिलाड़ी है। यह दुनिया का सबसे बड़ा दूध, दाल, और मसालों का उत्पादक है और अनाज, फल, सब्जियां, कपास, चीनी, और मछली पालन में भी शीर्ष देशों में शामिल है। इसके अतिरिक्त, भारत का कृषि उत्पादन वैश्विक दक्षिण के देशों को समर्थन देने में भी महत्वपूर्ण है, जहाँ खाद्य असुरक्षा की स्थिति अधिक गंभीर है। हालांकि, भारत की 55.6% आबादी अब भी स्वस्थ आहार का खर्च वहन करने में सक्षम नहीं है, जो देश के विकासशील खाद्य सुरक्षा ढांचे के लिए एक चुनौती है। यह लगभग 788.2 मिलियन लोगों का प्रतिनिधित्व करता है, जो एशिया में सबसे अधिक है।

सरकारी पहलें और खाद्य सुरक्षा

भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने कई महत्वपूर्ण योजनाएँ चलाई हैं। इनमें से कुछ मुख्य पहलें इस प्रकार हैं:

  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA): इसके तहत हर साल 81 करोड़ लोगों को सब्सिडी वाला अनाज मिलता है। यह सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के जरिए लागू होता है।

  • प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY): कोविड-19 महामारी के दौरान शुरू की गई इस योजना को 2024 तक बढ़ाया गया है, जिसके तहत 81.35 करोड़ लोगों को मुफ्त खाद्यान्न दिया जाता है।

  • पीएम पोषण योजना: यह योजना सरकारी स्कूलों के बच्चों की पोषण स्थिति सुधारने पर केंद्रित है, जिसका कुल बजट ₹130,794.90 करोड़ है।

  • अंत्योदय अन्न योजना (AAY): यह सबसे गरीब तबकों को कवर करती है, जिसमें 8.92 करोड़ लोग शामिल हैं।

  • फोर्टिफाइड चावल वितरण: पोषण में सुधार के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत फोर्टिफाइड चावल का वितरण शुरू किया गया, जिसमें 406 लाख मीट्रिक टन चावल वितरित किया गया है।

  • मूल्य स्थिरता कोष (PSF): सरकार ने कीमतों की अस्थिरता से निपटने के लिए प्याज, दाल, और अन्य आवश्यक वस्तुओं के लिए इस कोष का उपयोग किया है, जिससे गरीब तबकों को राहत दी जा सके।

खाद्य सुरक्षा ढांचे की आलोचना-

हालांकि सरकार ने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई कदम उठाए हैं, लेकिन इसमें कुछ चुनौतियाँ और आलोचनाएं भी हैं:

  1. आर्थिक तर्कसंगतता: बड़े पैमाने पर सब्सिडी वाला भोजन उपलब्ध कराना आर्थिक रूप से स्थायी नहीं माना जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि खाद्य सब्सिडी को लक्षित किया जाना चाहिए ताकि वास्तविक जरूरतमंदों को ही इसका लाभ मिल सके।

  2. गरीबी मापदंड: नीति आयोग के अनुसार, 2013-14 में 29.13% से घटकर 2022-23 में 11.28% गरीबी का अनुपात कम हुआ है। इस कमी को ध्यान में रखते हुए मुफ्त खाद्यान्न वितरण की निरंतरता पर सवाल उठते हैं।

  3. अक्षमताएं: शोध बताते हैं कि लगभग 25-30% खाद्य और उर्वरक सब्सिडी सही लोगों तक नहीं पहुँच पाती। इसके कारण सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है।

कुछ प्रमुख सुधारों की ओर ध्यान-

खाद्य सुरक्षा के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए भारत को कुछ प्रमुख सुधारों की ओर ध्यान देना होगा:

  1. डिजिटलीकरण: खाद्य वितरण प्रणाली के डिजिटलीकरण से अनियमितताओं को कम किया जा सकता है और दक्षता बढ़ाई जा सकती है।

  2. लक्षित सब्सिडी: सब्सिडी प्रणाली को अधिक लक्षित बनाकर, केवल गरीब और जरूरतमंदों को ही मुफ्त खाद्यान्न दिया जाना चाहिए।

  3. कृषि में निवेश: कृषि अनुसंधान और सटीक खेती में निवेश से खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा मिल सकता है।

वैश्विक खाद्य सुरक्षा संकट को हल करने में अहम भूमिका-

विश्व खाद्य दिवस वैश्विक खाद्य सुरक्षा को बेहतर बनाने और भूख मिटाने के संकल्प का प्रतीक है। भारत जैसे देश, जहाँ खाद्य उत्पादन उच्च स्तर पर है, वैश्विक खाद्य सुरक्षा संकट को हल करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। हालांकि, भारत को अपनी सब्सिडी प्रणालियों और वितरण ढांचे में सुधार लाने की जरूरत है, ताकि गरीब और असुरक्षित तबकों को सही समय पर सही सहायता मिल सके। इसके साथ ही, सतत विकास लक्ष्यों (SDG) में शामिल "शून्य भूख" के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकार को खाद्य सुरक्षा नीतियों को और सुदृढ़ करना होगा।

अन्य ख़बरें

संबंधित खबरें