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भारत की राजनीति में आया है एक ऐतिहासिक भूकंप, 58 साल पुराना प्रतिबंध टूटा!

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भारत की राजनीति में ऐसा ऐतिहासिक भूकंप आया है, जिसने 58 साल पुराने प्रतिबंध को तोड़ दिया है। मोदी सरकार ने एक ऐसा फैसला लिया है, जो देश की राजनीतिक धुरी बदल सकता है। दरअसल अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, यानि RSS के कार्यक्रमों में  सरकारी कर्मचारी भी दिखाई देंगे। साल 1966 में लगाया गया वो बैन, जो दशकों से चला आ रहा था। अब वह इतिहास बन गया है।

क्या यह फैसला बदल देगा देश की राजनीतिक दिशा?

अब सवाल उठता है कि क्या नौकरशाही अब खाकी निक्कर में नज़र आएगी? क्या सरकारी दफ्तरों में अब RSS की विचारधारा का प्रभाव बढ़ेगा? कांग्रेस ने इस फैसले पर तीखा तंज कसा है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा - 'नौकरशाही अब निक्कर में भी आ सकती है'। क्या यह बयान भारतीय राजनीति में नए विवाद की शुरुआत है? लेकिन ये सिर्फ शुरुआत है बल्कि यह फैसला RSS और सरकार के बीच नए रिश्ते का संकेत है।

क्या यह मोदी सरकार की नई रणनीति का हिस्सा है?

याद कीजिए इतिहास को! फरवरी 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद सरदार पटेल ने RSS पर प्रतिबंध लगाया था। बाद में यह प्रतिबंध हटा, लेकिन RSS पर नज़र रखने के लिए नए नियम बनाए गए।

अब वो दौर पूरी तरह से खत्म हो गया है?

BJP IT सेल हेड अमित मालवीय ने इस फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि यह असंवैधानिक आदेश था, जिसे पहले ही हटा दिया जाना चाहिए था। 

क्या यह नए भारत का संकेत है?

लेकिन सवाल अभी भी कई हैं! क्या होगा इस फैसले का असर? क्या सरकारी कर्मचारियों की राजनीतिक निष्पक्षता पर असर पड़ेगा?
और सबसे बड़ा सवाल  है कि यह फैसला 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले लिया गया एक रणनीतिक कदम है? क्या RSS अब देश की राजनीति में और अधिक सक्रिय भूमिका निभाएगा?

क्या बदलेगा भारत का सियासी नक्शा? 

यह एक ऐसा मुद्दा है जो न सिर्फ बदल सकती है देश की राजनीतिक तस्वीर, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक नया अध्याय लिख सकती है। 

 

By Satyarth Prakash

(लेखक एक राजनीतिक विश्लेषक हैं। वह देश के चर्चित राजनीतिक मुद्दों पर मुखरता  से अपनी राय रखते है। यह उनके निजी विचार हैं।)

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