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बड़ा मंगल और भंडारे की कहानी

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आज ज्येष्ठ का पहला बड़ा मंगलवार, लखनऊ सहित प्रदेश भर के हनुमाम मंदिरों में विभिन्न आयोजन किए जा रहे हैं श्रद्धालु सुबह से ही बजरंगबली के दर्शनों के लिए लंबी-लंबी लाइनों मे लगे हुए हैं। मंदिरों में भीड़-भाड़ के मद्देनजर पुलिस सर्तक है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बड़ा या बुढ़वा मंगल किसे कहते हैं और मंगलवार पर भंडारे की परंपरा कहां से शुरू हुई।
बड़े या बुढ़वा मंगल की पौराणिक कहानी- हिंदू धर्म में ज्येष्ठ मास का बड़ा महत्व है। कहा जाता है कि ब्रह्मा जी को 12 महीनों में सबसे प्रिय ज्येष्ठ मास है। इस महीने में पड़ने वाले  मंगलवार का खास महत्व होता है। वैसे तो मंगलवार का दिन हनुमान जी समर्पित होता है और मंगलवार के दिन हनुमान जी की पूजा-अर्चना की जाती है, परंतु जयेष्ट मास के मंगलवार को हनुमान जी पूजा का विशेष महत्त्व होता है. इस माह में पड़ने वाले मंगलवार को बड़ा मंगल कहते हैं. इसे बुढ़वा मंगल भी कहा जाता है. मान्यता है कि ज्येष्ठ मास में पड़ने वाले बड़े मंगल पर विधि विधान से हनुमानजी की पूजा अर्चना करने से भक्तों को प्रत्येक कष्ट और बाधा से मुक्ति मिलती है।

बड़ा मंगल को बुढ़वा मंगल कहने के पीछे दो पौराणिक कथा प्रचलित हैं. एक कथा के मुताबिक महाभारत काल में जब भीम को अपने बल का बड़ा घमंड हो गया था, तो हनुमान जी ने बूढ़े वानर का रूप रखकर भीम के घमंड को मंगलवार को तोड़ा था. दूसरी कथा के अनुसार वन में विचरण करते हुए भगवान श्री राम जी से हनुमान जी का मिलन विप्र (पुरोहित) के रूप में इसी दिन हुआ था. इसलिए ज्येष्ठ मास के मंगलवार को बुढ़वा मंगल या बड़ा मंगल के नाम से जाना जाता है।

बडे़ मंगल की शुरुआत- कहा जाता है कि बडे़ मंगल की शुरुआत यूपी का राजधानी लखनऊ के पुराने हनुमान मंदिर परिसर से मेले के रूप में हुई थी। हलांकि इसको लेकर कई किवदंतियां  प्रसिद्ध हैं । नवाब सआदत अली ने अपनी मां के कहने पर मंदिर का निर्माण कराया था। उनके द्वार स्थापित मंदिर के गुंबद पर चांद की आकृति हिन्दू-मुस्लिम एकता की कहानी को बयां करती है। इसके साथ ही यह भी कहा जाता है कि केसर का व्यापार करने कुछ व्यापारी आए थे उनका केसर बिक नहीं रहा था। नवाब वाजिद अली शाह ने उनका पूरा केसर खरीद लिया था और वह महीना ज्येष्ठ का था। हलांकि इतिहासकार कहते हैं कि इसको लेकर कोई ऐतिहासिक तथ्य नहीं है ये सब किवदंतियां ही हैं। यह भी कहा जाता है कि हीवेट पॉलीटेक्निक के पास हनुमानबाड़ी के पास मूर्ति दबी होने का सपना बेगम को आया था जिसके बाद उन्होंने मूर्ति निकलवाकर मंदिर का निर्माण करवाया था। कहा जाता है कि एक बार प्लेग महामारी को भगाने के लिए नवाबों ने यहां पर मन्नत मांगी थी कि ये महामारी खत्म होने पर भंडारे का आयोजन कराएंगे, तब से ही यहां पर जेष्ठ माह के हर बड़े मंगल को भंडारे का प्रचलन शुरू हुआ है। 
बताया जाता है कि यह मंदिर इतना है कि यहां पर नीम करोली बाबा भी आते थे। यहां पर मांगी गई श्रद्धालुओं की हर मनोकामना पूरी होती है।

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