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सबके अपने-अपने राम

जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तिन तैसी 
राम के बारे में यह पंक्तियाँ उनके विवाह के समय जितनी सार्थक थी उतनी ही आज भी हैं क्योंकि केवल भारत ही नहीं कई अन्य देश जैसे बर्मा, इंडोनेशिया, कंबोडिया, लाओस, फिलीपींस, श्रीलंका, नेपाल, थाईलैंड, मलेशिया, जापान, मंगोलिया, वियतनाम और चीन में भी रामायण का अस्तित्व पाया गया है। राम को जानने के बारे में न केवल हिन्दुओं की बल्कि मुगलों और ईसाईयों की रुचि रही है। जहाँ मुग़लों ने वाल्मीकि रामायण का उर्दू में अनुवाद कराया वंही बेल्जियम से भारत आए मिशनरी कामिल बुल्के ने तो तुलसीदास की रामचरितमानस पर पूरी PhD ही कर डाली। किस तरह से पूरे विश्व में रामायण फैली है, किस-किस स्वरुप में फैली है इन्ही सवालों के जवाब के साथ हाजिर है -"बातें यूपी की"

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